कोरोना के खिलाफ 54 दिन की लंबी और कठिन लड़ाई जम्मू ने जीत ली है। जम्मू जिले में कोरोना का अब एक भी केस नहीं है। 15 अप्रैल से ही जम्मू में कोरोना का कोई नया मरीज नहीं मिला है। यही नहीं जितने मरीज पॉजिटिव टेस्ट हुए थे, वह भी ठीक होकर अपने घर लौट गए हैं।
जम्मू और कश्मीर के बीच यूं तो बस एक जवाहर टनल का फासला है, लेकिन जम्मू से 250 किमी दूर कश्मीर में कोरोना अब भी चुनौती बना हुआ है। जम्मू और कश्मीर में कुल 666 केस अब तक मिले हैं, जिनमें से 606 कश्मीर डिविजन में और 60 जम्मू डिविजन में।
पॉजिटिव केस मिले | 666 |
जम्मू डिविजन | 60 |
कश्मीर डिविजन | 606 |
मरीज ठीक हुए | 254 |
कश्मीर डिविजन में 396 एक्टिव केस हैं जबकि जम्मू में एक्टिव केस सिर्फ 8 हैं। इनमें से 2 केस उधमपुर, 2 सांबा और एक-एक राजौरी, रियासी, रामबन और कठुआ में एक्टिव है।
जम्मू जिले में एक भी केस नहीं है, जबकि श्रीनगर जिले में 106 केस हैं।
कश्मीर में सबसे ज्यादा बांदीपोरा जिले में हैं जहां 128 केस मिले हैं, जबकि एक्टिव 91 हैं। इसी जिले में जिस मरीज की सबसे पहली मौत हुई थी, उसके कॉन्टैक्ट में आए 40 से ज्यादा लोगों को संक्रमण हुआ था।
जम्मू में रेड जोन में आनेवाले इलाकों में टेस्टिंग के बावजूद 15 अप्रैल के बाद से कोई केस नहीं मिला है। वहीं कश्मीर घाटी में गुरुवार को 33, शुक्रवार को 25 और शनिवार को 25 नए केस मिले थे।
30 अप्रैल को जम्मू में इलाज ले रहे 4 केस मुस्कुराते हुए अस्पताल से घर लौटे और डॉक्टर्स-मेडिकल स्टाफ ने तालियां बजाकर उनका हौसला बढ़ाया।
हालांकि जम्मू को कोविड फ्री घोषित करने से पहले डिप्टी कमिश्नर जम्मू ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा कि, जिले के सभी 26 केस ठीक होकर घर जा चुके हैं, लेकिन अभी एहतियात बरतनी होगी।
जम्मू कश्मीर सरकार के प्रवक्ता रोहित कंसल के मुताबिक, उनकी कोशिशें सफल हो रही हैं और लॉकडाउन फायदेमंद रहा है। रोहित कंसल के मुताबिक वह हर दिन 1800 लोगों की जांच कर रहे हैं और कुछ दिन में 2000 की करने लगेंगे। जम्मू कश्मीर में 254 लोग ठीक हो चुके हैं। 74 हजार को कोविड सर्विलेंस में रखा गया था और उनमें से 56 हजार ने 28 दिन का सर्विलांस पूरा भी कर लिया है।
आखिर जम्मू ने किया क्या?
8 मार्च को जम्मू में कोरोना वायरस का पहला पॉजिटिव केस मिला था। इस पर जम्मू की डिप्टी कमिश्नर सुषमा चौहान ने तुरंत एक्शन लिया। मरीज कारगिल का रहने वाला था और उसकी ईरान की ट्रैवल हिस्ट्री थी। उससे मिलने वाले सभी लोगों की पहचान की गई और उन्हें क्वारैंटाइन किया गया। सैम्पल लेने से पहले सभी को क्वारैंटाइन कर दिया गया था।
रिपोर्ट्स पॉजिटिव आए उससे पहले जिला प्रशासन ने कंटेन्मेंट प्लान पर काम शुरू कर दिया था। 11 मार्च से स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी बंद कर दिए थे और सरकारी दफ्तर की बायोमैट्रिक एटेंडेंस भी।
फिर मॉल्स, सिनेमा हॉल और भीड़ वाले बाजार बंद कर दिए गए। मार्च के पहले हफ्ते में ही एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन और बस स्टॉप पर यात्रियों की स्क्रीनिंग की जा रही थी। होटल से मेहमानों की ट्रैवल हिस्ट्री मांगी गई। इसी के साथ सभी धार्मिक स्थल मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों और चर्च को बंद कर दिया गया।
18 मार्च को बंद कर दी वैष्णोदेवी यात्रा
17 मार्च को माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड ने एडवायजरी जारी की और 18 से यात्रा बंद कर दी। इसी दिन इंटर स्टेट बस सर्विस और गाड़ियों की आवाजाही को भी रोक दिया गया। जम्मू कश्मीर की सीमा लखनपुर को सील कर दिया गया और भीतर आनेवालों के लिए 14 दिन का क्वारैंटीन अनिवार्य कर दिया।
इस दौरान जम्मू में 6 डॉक्टर और एक हेल्थ वर्कर पॉजिटिव पाए गए। अब वे सभी ठीक होकर घर जा चुके हैं। इन सभी के परिवार वालों को भी नियम के मुताबिक क्वारैंटाइन किया गया। जिनमें से कुछ पॉजिटिव भी मिले और अब वे सब भी ठीक हो गए हैं।
अब हेल्थ डिपार्टमेंट के लोग घर-घर जाकर स्क्रीनिंग कर रहे हैं। जिसमें आशा वर्कर और सरकारी कर्मचारी शामिल हैं। सबसे बड़ी चुनौती पॉजिटिव केस के कॉन्टैक्ट में आए लोगों की पहचान करना था।
पुलिस ने निजामुद्दीन मरकज से आए लोगों और धार्मिक नेताओं की पहचान करने के लिए तब्लीगी लिंक के लोगों की स्क्रीनिंग की। इसी के साथ रोहिंग्या बस्ती में घनी आबादी के बीच भी स्क्रीनिंग की गई।
कश्मीर से क्या गलतियां हुईं?
कश्मीर में इसके उलट लोगों को बाहर से लौटे यात्रियों के स्क्रीनिंग न करवाने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। जनवरी से मार्च का वक्त उन कश्मीरियों की घर वापसी का समय था जो हर बार सर्दियों में जम्मू, दिल्ली या घाटी से कहीं और चले जाते हैं। बाहर से लौटने वाले विदेश से लौटे लोग भी शामिल हैं।
एयरपोर्ट पर प्रशासन ने हेल्प डेस्क और स्क्रीनिंग काउंटर बनवाया है। लेकिन लोगों ने ओहदे और पहुंच का फायदा उठाया और स्क्रीनिंग को बायपास कर वहां से निकल लिए।
कइयों ने तो अपनी ट्रैवल डिटेल्स छिपाई और बाद में उनमें कोरोना के लक्षण मिले। यही नहीं ये लोग कई और लोगों से मिले जुले भी और बाद में पुलिस को इनके कॉन्टैक्ट में आए लोगों का पता लगाने में पसीने आ गए। कश्मीर में धार्मिक स्थलों को बंद करने का फैसला काफी बाद में लिया गया जिससे कई पॉकेट्स में कोरोना काफी गहरे फैल गया।
कश्मीर में सबसे ज्यादा प्रभावित बांदीपोरा, यहां 52 पॉजिटिव
बांदीपोरा में एक तब्लीगी धार्मिक नेता के संपर्क में आने से 40 से ज्यादा लोगों को संक्रमण फैला। बांदीपोरा कश्मीर का सबसे प्रभावित जिला है जहां 52 में से 48 केस गुंड जहांगीर गांव के एक ही मोहल्ले डांगेरपोरा के हैं। इस मोहल्ले के सभी लोगों के कोरोना टेस्ट करवाए गए। जिसमें 700 से ज्यादा नेगेटिव भी आए।
जनाजे में शामिल हुए सैंकड़ो लोग
कश्मीर के सोपोर में स्थानीय गांववालों ने आतंकवादियों के जनाजे में शामिल होकर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाईं। 9 अप्रैल को शोपियां में जैश के एक आतंकी के जनाजे में 400 से ज्यादा लोग शामिल हुए। जिसके बाद प्रशासन ने आतंकवादियों के शव परिवार को सौंपना और उनके नाम पब्लिक करना बंद कर दिया।
25 अप्रैल को अनंतनाग में एक गर्भवती महिला और उनके जुड़वां बच्चों की मौत हो गई थी। उसके शव को यूं ही घरवालों को दे दिया था, बाद में उस महिला का टेस्ट पॉजिटिव आया था। उसके जनाजे में कई लोग शामिल हुए थे।
26 मार्च को पहली कोरोना संक्रमित की मौत हुई थी। मरने वाला श्रीनगर के डाउनटाउन का एक 65 वर्षीय आदमी था। पहली मौत के बाद लोगों ने प्रशासन को कंट्रोल रूम में फोन लगाने शुरू किए और जानकारियां देने लगे। हर दिन 400-500 लोगों की जानकारियां प्रशासन को मिलने लगी।
इससे पहले सिर्फ लोग छिप रहे थे। लेकिन इसके बाद प्रशासन ने भी आतंकवादियों को ढूंढने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले नेटवर्क को कोरोना मरीजों को ढूंढने में इस्तेमाल किया।
कई इलाकों में हेल्थ वर्कर और स्क्रीनिंग के लिए आए कर्मचारियों पर पथराव भी किए गए। 18 अप्रैल को हेल्थ वर्कर की टीम बांदीपोरा गई थी। ये दो पॉजिटिव केस को लेने गए थे। इन पर स्थानीय लोगों ने पथराव कर दिया और कर्मचारी को चोटें आई थीं।
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