परिवार क्या है? कोई कहता है एक छत के नीचे अपने-अपने, अलग-अलग संसार। किसी का कहना है पृथ्वी पर स्वर्ग या नर्क। किसी के लिए परिवार उपलब्धि है तो किसी के लिए कलह का केंद्र। आज दुनिया परिवार दिवस मना रही है और कैसा योग है कि कोरोना के चलते सारी दुनिया अपने-अपने परिवारों में सिमट गई है। सामान्य भाषा में कहेंं तो परिवार एक आदत है, अच्छी आदत। और परिवार को आदत बना लेंगे तो वह बोझ नहीं लगेगा। जैसे कहा जा रहा है- पता नहीं कोरोना जाएगा या नहीं..।
इसलिए समझदारी इसी में है कि इसके साथ रहने की आदत बना लें। पुराने दौर में जब स्त्रियां विवाह कर ससुराल आती थीं तो कितनी ही समझदार हो, ससुराल के नए लोगों के साथ जीवन को जमाने में बड़ी ताकत लगती थी। अपना पूरा अस्तित्व झोंकना पड़ता था उन्हें। पुरुष तो उसी प्लेटफॉर्म पर खड़ा रहकर जीवन साथी ले आता था।
चुनौतियां स्त्री के सामने ही होती थीं और ऐसे में जब उसे विचलन होता था तो वह एक बार अपनी मां से जरूर बात करती थी। उस समय बहुत सी माताएं बेटी को समझाती थीं कि बेटी, तू पूरी-पूरी कोशिश कर उस परिवार को अपने ढंग से एडजस्ट करने की। फिर भी यदि ऐसा नहीं हो पाए तो उसमें रहने की आदत डाल ले। माताओं की इस समझाइश ने कई परिवार टूटने से बचाए। अब यही समझाइश कोरोना के साथ काम आएगी कि इसके साथ रहने की आदत बना लें, अन्यथा टूट जाएंगे।
जीने की राह कॉलम पं. विजयशंकर मेहता जी की आवाज में मोबाइल पर सुनने के लिए 9190000072 पर मिस्ड कॉल करें
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