स्ट्रॉबेरी से लेकर फालसे, करौंदे, आंवले की फसल पर लॉकडाउन का असर, नुकसान होने पर मुआवजा देने की सरकार के पास पॉलिसी तक नहीं - Viral News

Breaking

Home Top Ad

Monday, May 11, 2020

स्ट्रॉबेरी से लेकर फालसे, करौंदे, आंवले की फसल पर लॉकडाउन का असर, नुकसान होने पर मुआवजा देने की सरकार के पास पॉलिसी तक नहीं

ये उन किसानों की कहानी है जो ऐसी फसलें उगाते हैं जो गेंहू-चावल की तरह हर जगह नहीं होतीं। कम ही किसान ये फसलें चुनते हैं और इनकी खपत भी बहुत ज्यादा नहीं होती। शायद यही वजह है कि इन फसलों में नुकसान होने पर मुआवजा देने के लिए सरकार के पास पॉलिसी तक नहीं है। फिर चाहे बात स्ट्रॉबेरी की हो या फालसे, करौंदे और आंवले की। अदरक लहसुन जैसे मसाले भी इस कैटेगरी में शामिल हैं। देश के अलग-अलग राज्यों के उन गांवों से रिपोर्ट जहां की ये फसलें खास मशहूर हैं।

महाराष्ट्र: लॉकडाउन की वजह से किसानों ने खेतों में सड़ने दी स्ट्रॉबेरी की फसल
महाराष्ट्र के महाबलेश्वर में बड़ी संख्या में देश की कुल स्ट्रॉबेरी उत्पादन का 80% उगाया जाता है। इसकी खेती मुख्य तौर पर दिसंबर से शुरू होकर मई तक चलती है। स्ट्रॉबेरी की फसलों को बाजार में लाने का सबसे सही समय मार्च-अप्रैल और मई का महीना रहता है। लेकिन दुर्भाग्यवश इस बार इन तीन महीनों में पूरी तरह से लॉकडाउन रहा और स्ट्रॉबेरी की खेती पिछली बार से ज्यादा अच्छी होने के बावजूद खेतों में सड़ गई।

पिछले साल बेचा 8 लाख का माल, इस बार सिर्फ 10 हजार की कमाई
करीब 2 एकड़ में फैले लक्ष्मी स्ट्रॉबेरी फार्म के मालिक और किसान आनंद भिलारे ने बताया कि पिछले साल इसी सीजन में उन्होंने 7 से 8 लाख रुपए तक की कमाई की थी। लेकिन इस बार पहले बेमौसम बरसात की मार और फिर लॉकडाउन की वजह से सब चौपट हो गया। स्थानीय बाजार में सिर्फ 10 से 12 हजार रुपए की स्ट्रॉबेरी ही बिकी है।

इससे देश की सबसे बड़ी स्ट्रॉबेरी प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनी 'मैप्रो' में उनका माल सप्लाई होता था। कंपनी सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी स्ट्रॉबेरी से बने प्रोडक्ट की सप्लाई करती है। निर्यात बंद हो जाने के कारण कंपनी ने भी उनसे इस बार माल नहीं खरीदा है।

हर बार की तरह स्ट्रॉबेरी की खेती हुई तो है. लेकिन काटी नहीं। क्योंकि, किसानों का कहना है कि काट भी ली तो रखेंगे कहां?

फसल तोड़ते तो रखते कहां, इसलिए खेतों में सड़ने दिया
आनंद ने बताया, 'स्ट्रॉबेरी की पकी फसल को ज्यादा से ज्यादा 5 से 6 दिन तक संभाल कर रखा जा सकता है। हर साल भारी संख्या में महाबलेश्वर आने वाले टूरिस्ट भी स्ट्रॉबेरी की खरीदारी करते थे, लेकिन इस बार के हालात एकदम अलग हैं।

स्ट्रॉबेरी के खरीदार न होने के कारण हमने अपनी सारी फसल खेतों में ही सड़ने दी। आनंद ने बताया कि अगर हम स्ट्रॉबेरी को खेत से तोड़कर भी ले आते तो उसे रखते कहां पर। न हमारे पास मजदूर हैं और न ही इनके खरीदार, अब चिंता यह सता रही है कि इस बार हमने बैंक से जो लोन लिया था इस खेती के लिए उसे कैसे चुकाएंगे।'

स्ट्रॉबेरी की फसल खराब होने पर राज्य सरकार नहीं देती कोई मुआवजा
आनंद ने आगे बताया कि गेहूं धान या अन्य फसलों की तरह स्ट्रॉबेरी पर सरकार किसी तरह की कोई मेहरबानी या रियायत नहीं करती है। इस फसल को लेकर महाराष्ट्र सरकार की कोई पॉलिसी नहीं है। उत्तर प्रदेश या अन्य राज्यों में जब कोई फसल खराब होती है तो सरकार उसके बदले में मुआवजा देती है लेकिन स्ट्रॉबेरी की फसल खराब होने पर महाराष्ट्र की सरकार कोई मुआवजा नहीं देती। अकेले महाबलेश्वर तहसील में ढाई हजार एकड़ से अधिक क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी की फसल उगाई जाती है।

इस बार सिर्फ 40 प्रतिशत स्ट्रॉबेरी ही बाहर भेजी गई, 15 हजार मीट्रिक टन माल का हुआ नुकसान
प्रतिदिन 70 से 110 टन स्ट्रॉबेरी मुंबई, पुणे और सूरत के बाजारों में जाती थी। ट्रांसपोर्ट और बाजार के बंद होने की वजह से अब इस बार सिर्फ 40% ही बाहर के बाजारों में भेजा गया है। वहीं, स्ट्रॉबेरी ग्रोव्हर्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बालासाहेब भिलोरे का कहना है कि वर्तमान परिस्थितियों का आकलन करें तो स्ट्राबेरी उत्पादकों को अब तक 15 हजार मीट्रिक टन माल का नुकसान हुआ है।

उत्तरप्रदेश: करौंदे और फालसा की खेती करनेवाले गांव के 300 परिवारों को करोड़ों का नुकसान
भारत में वाराणसी के गांव चिरईगांव में करौंदे और फालसा की खेती होती है। शहर से करीब 18 किमी दूर इस गांव के प्रधान धनंजय मौर्या ने बताया कि इस बार गांव के 300 से ज्यादा किसान परिवारों को दो से ढाई करोड़ का नुकसान होने जा रहा है। करौंदे का अचार ,मुरब्बा, कैंडी, चैरी का उद्योग ठप पड़ गया है। इसके अलावा लोग फालसा को पकाकर और उसका रस भी पीते हैं।

चिरईगांव की कुल आबादी 11 हजार के करीब है। यहां करीब 360 एकड़ क्षेत्रफल में फालसा और करौंदे की खेती की जाती है। 40 प्रतिशत आबादी कृषि पर ही निर्भर है। गांव में 20 से 25 प्रतिशत लोग करौंदे और फालसा की खेती करते है।

ये करौंदे का पेड़ है। इसके फल से अचार, मुरब्बा, कैंडी बनाई जाती है।

फालसा यूपी से मुंबई, दिल्ली, जयपुर, गुजरात और मुरब्बा जापान, दुबई और अमेरिका जाता है
किसान जितेंद्र कुमार मौर्या ने बताया कि 30 अप्रैल तक फालसा पक गया था। मजदूर जो फलों को तोड़ते थे, वह मिल नहीं रहे हैं। देखभाल भी नहीं हो पा रही है। इस कारण पशु भी खेतों में घुस जाते हैं और फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं। मौर्या ने बताया कि फालसा यूपी समेत मुंबई ,दिल्ली, गुजरात और जयपुर तक जाता है। आमतौर पर इसका रेट 400 रुपए की पांच किलो है। लेकिन, लॉकडाउन के कारण फसल बर्बादी के कगार पर है। एक बीघा में करीब 15 से 20 टन फालसा का उत्पादन होता है। 600 से 700 कुंतल करौंदे का उत्पादन होता है। यहां का बना मुरब्बा ,कैंडी ,चेरी जापना अमेरिका दुबई तक जाता है।

वहीं, एक अन्य किसान संजीवन मौर्या ने बताया चिरईगांव भारत का एकमात्र गांव है जहां करौंदे की खेती होती है। लेकिन, गांव की कई फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं। साल भर की एक यही फसल है। हम लोगो का जो माल मार्च में निकला वो डंप हो गया। लोग घरों और फैक्ट्री वाले अब किसी तरह ड्रम में उसको केमिकल डालकर रख रहे हैं। लेकिन, लॉकडाउन अगर बढ़ा तो सड़ जाएगा।

फालसे की खेती करने वाले किसान जितेंद्र और प्रधान।

करीब 80 से 100 बीघा की फसल बर्बाद हो गई। जो फसल लगी है, वो जून, जुलाई महीने में तैयार हो जाएगी। ऐसे में जब पिछली फसल ही नहीं बिकेगी और फैक्ट्री मालिक, किसानों को पैसा भी चुका नहीं पाएंगे तो एक से डेढ़ करोड़ का नुकसान होगा।

ग्राम प्रधान धनंजय मौर्या ने बताया कि लोग घरो से निकल नहीं रहे हैं। करौंदे और फालसा दोनों लॉकडाउन अगर बढ़ा तो खत्म हो जाएगा। पिछले साल कीकरौंदे की फसल ही किसानों और फैक्ट्री मालिकों के पास अभी तक पड़ी है। इसकी फुटकर बिक्री में कोई खरीदने वाला भी नहीं है। फालसा तो मई के महीने में ही खूब बिकता है। पिछले साल करीब 2 करोड़ से ज्यादा का व्यपार दोनों फसलों में हुआ था।

राजस्थान: लहसुन उगाने वाले किसान हुए मायूस, इस साल 92 हजार हैक्टेयर में बोयी थी फसल
इस बार हाड़ौती में लहसुन की बंपर पैदावार हुई है। किसानों ने इस बार 92 हजार से ज्यादा हैक्टेयर में लहसुन बोया और 6 लाख मीट्रिक टन से अधिक पैदावार हुई। बंपर पैदावार होने से किसान पहले खुश नजर आ रहे थे, लेकिन अब मायूस होने लगे हैं। क्योंकि सरकार ने अभी तक लहसुन खरीद के कोई प्रयास नहीं किए हैं, जबकि 15 अप्रैल से गेहूं, चना, सरसों की समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू हो गई है। लहसुन की पैदावार अधिक होने और खरीद शुरू नहीं होने से किसानों से सामने भंडारण की समस्या आ रही है।

किसान लॉकडाउन के कारण बेच नहीं पा रहे हैं, जो मंडी में लेकर जा रहे हैं, उन्हें सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं। इससे उनका भाड़ा भी नहीं निकल पा रहा है। उनका कहना है कि लहसुन की खरीदी सरकार को जल्द शुरू करनी चाहिए। इसका रेट भी 50 रुपए किलो होना चाहिए। तब जाकर किसानों को नुकसान से बचाया जा सकेगा। क्योंकि इस फसल से किसानों को बहुत आस है। वे अपना कर्जा उतारना चाहते हैं।

लहसुन बिकने को तो तैयार है, लेकिन इसे खरीदने के लिए कोई खरीदार नहीं मिल रहा।

करीब 1200 करोड़ का सालाना होता है कारोबार
एक्सपर्ट्स की मानें तो हर साल 1000 से 1200 करोड़ का कारोबार लहसुन से होता है। यानी बाजार में हर साल लहसुन से इतना पैसा आता है। इस बार भी एक्सपर्ट बताते हैं कि अगर 3500 रुपए क्विंटल भी लहसुन बिका तो करीब 1200 से 1400 करोड़ का कारोबार होगा। इससे हाड़ौती की अर्थव्यवस्था को काफी मजबूती मिलेगी।

हरियाणा: 23 गांवों में 300 क्विंटल अदरक पैदा हुई, लॉकडाउन नहीं खुला तो प्रभावित होगी कमाई
मोरनी इलाके में पहाड़ों पर अदरक बोई जाती है। इस अदरक से सोंठ तैयार की जाती है। मोरनी पंचायत के 23 गांवों में इस बार करीब 300 क्विंटल अदरक की पैदावार हुई है। इस अदरक से सोंठ बनाई जाएगी। यहां रहने वाले किसानों ने अदरक से सोंठ बनाने का काम शुरू कर दिया है। उन्होंने घरों में ही सोंठ बनाने के लिए यंत्र लगाए हुए हैं। यहां के टिपरा, कोटी, धारला, नाइजा, घारटी गांव में ज्यादा अदरक होता है।

टिपरा गांव के सरपंच का कहना है कि लॉकडाउन का अदरक से सोंठ बनाने के काम पर कोई असर नहीं पड़ा है क्योंकि अभी इसे मार्केट में ले जाने का समय नहीं हुआ। जिस दौरान लॉकडाउन हुआ तब अदरक खेतों से उखाड़े जाने का काम जारी था। अब उससे सौंठ बनाने का काम हो रहा है। मार्केट में लेकर जाने का समय अगले आने वाले महीनों का है, जब अदरक सूखकर सौंठ बन जाएगा। तब यदि लॉकडाउन नहीं खुलता है तो उनकी आमदनी प्रभावित होगी।

अदरक को सुखाकर सौंठ बनाया जाता है।

उत्तर प्रदेश: प्रतापगढ़ के 5 हजार किसान करते हैं आंवले की खेती, रोज 5-7 हजार रु का नुकसान हो रहा है
यूपी के प्रतापगढ़ में ज्यादातर इलाकों में बलुई दोमट मिट्टी है। जिसके कारण यहां आंवले की अच्छी पैदावार होती है। जिले में लगभग 8 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में आंवले की खेती होती है। प्रतापगढ़ के 5000 से ज्यादा किसान इसी की खेती करते हैं।

आवंला उत्पाद बनाने वाली फैक्ट्री किशोरी फ्रूट प्रोडक्ट्स के मालिक विष्णु खंडेलवाल ने बताया कि लॉकडाउन के चलते रोजाना 3 से 5 हजार रुपए का नुकसान हो रहा है। फैक्ट्री में 100 कुंतल के लगभग आंवला डंप पड़ा हुआ है। इसकी कीमत करीब 3 लाख रुपए है। मजदूर भी नही है। इससे प्रोडक्ट में तब्दील किया जा सके। अब बस लगता है कि नुकसान होने तय है।

प्रतापगढ़ में आंवले की अच्छी पैदावार होती है। लेकिन, लॉकडाउन की वजह से किसानों को रोज 5 हजार रुपए तक का नुकसान हो रहा है।

वही फैक्ट्री मालिक मनोज सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के पहले रोजाना फैक्ट्री में आंवले से बर्फी लड्डु बनाया जाता था। लेकिन, मजदूरों के घर चले जाने के चलते फैक्ट्री पूरी तरह से बंद होने के चलते रोजाना 5 से 7 हजार का नुकसान हो रहा है। आंवला भी अब धीरे धीरे खराब हो रहा है।

इनपुट- महाराष्ट्र से आशीष राय, राजस्थान से आदिदेव भारद्धाज, हरियाणा से मनोज कौशिक, उत्तर प्रदेश से रवि श्रीवास्तव और अमित मुखर्जी



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
देश में स्ट्रॉबेरी का जितना उत्पादन होता है, उसका 80% अकेले महाराष्ट्र के महाबलेश्वर में हो जाता है।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2LlzgIA

No comments:

Post a Comment

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here

Pages