मुंबई से यूपी, बिहार, मप्र, राजस्थान और दूसरे राज्यों के लिए निकले मजदूरों के काफिले से मुंबई-आगरा हाईवे भरा हुआ है। चिलचिलाती धूप के बीच लंगर इन मजदूरों के लिए बड़ा सहारा बन गए हैं। कसारा (मुंबई) से नासिक के बीच जगह-जगह प्रवासी मजदूरों के लिए लंगर चलाए जा रहे हैं। 80 किमी के इस डिस्टेंस में दो बड़े लंगर सिख समुदाय द्वारा और एक लंगर मुस्लिम समुदाय द्वारा चलाया जा रहा है।
हिंदू संगठन के लोग टेम्पो-रिक्शा के जरिए जगह-जगह खाने-पीने के पैकेट और पानी बांट रहे हैं। नासिक से 25 किमी दूर राजूर फाटा परसिखों द्वारानिर्मला आश्रम तपस्थान लंगर चलाया जा रहा है। यहीं से थोड़ी आगे बढ़ने पर वाडिवरे गांव के पास मुस्लिमों के उम्मीद जनजीवन बहुउद्देशीय फाउंडेशन द्वारा दूसरा लंगर चल रहा है।
तीसरा लंगर नासिक से करीब 65 किमी दूर मंगरूल में सिखों द्वारा चलाया जा रहा है।मंगलवार को जब हमारी टीम यहां पहुंची तो हाईवे का नजारा देखकर अल्लामाइकबाल की लिखी लाइनें 'मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तांहमारा' मेरे जहन में आ गईं।
मैंने देखा, भूखे-प्यासे अपने आशियानेकी तरफ भाग रहे प्रवासी मजदूरों की सेवा हिंदू, मुस्लिम और सिख समुदाय के लोगों द्वारा की जा रही है।न खाने वालों को पता है कि हमें कौन खिला रहा है और न ही खिलाने वालों को पता है कि हम किसको खिला रहे हैं। रमजान के पाक महीने में रोजेदार खुद तो भूखे-प्यासे हैं, लेकिन वे हाईवे से गुजर रहे मजदूरों की सेवा में लगे हैं।
कसारा के थोड़ी आगे बढ़ते ही मुस्लिमों द्वारा चलाया जा रहा लंगर नजर आता है।नासिक उम्मीद जनजीवन बहुउद्देशीय फाउंडेशन द्वारा पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से यहां लंगर चलाया जा रहा है।ये लोग मुसाफिरों को फल बिरयानी, खिचड़ी और पानी दे रहे हैं।
संस्था के अजमल खान कहते हैं कि, चार से पांच हजार लोग रोजाना यहां अपनी भूख और प्यास मिटाते हैं। लोग यहां रुकते हैं। खाते-पीते हैं। थोड़ी देर आराम करते हैं। फिर जाते हैं।
सिखों के लंगर में 5 से 6 हजार लोग भूख मिटा रहे
सिख समुदाय के लंगर में भोजन के साथ ही छांछ, पानी और लस्सी भी बांटी जा रही है।
समुदाय के हरविंदर सिंह ने बताया कि सुबह से देर रात तक चलने वाले लंगर में हर रोज 5 से 6 हजार लोग यहां अपनी भूख मिटा रहे हैं।जो मजदूर सफर पर निकले हैं, उनके पास खाने-पीने की खुद की व्यवस्था नहीं है।वे नदी पर नहा रहे हैं। लंगर में खा रहे हैं और चलते जा रहे हैं।
मंगलवार को हमें झारखंड जाने वाले 70 लोग का समूह कसारा घाट पर मिला।समूह के उमेश मंडल ने बताया कि हम लोग पिछले दो दिनों से पैदल चल रहे हैं।हमने इसकीसूचना डिप्टी कलेक्टर को दी। इसके बाद इन लोगों को बसों के जरिए सेंधवा बॉर्डर तक छोड़ा गया।सरकार मजदूरों को बॉर्डर तक छोड़ने के लिए बसें चला रही है, लेकिन सभी को इसकी जानकारी नहीं है।
हमें मुंबई से बाइक से बनारस जा रहा एक और परिवार भी मिला। इन लोगों को कहना थाकि, कैसे भी घर पहुंचना है। मुंबई से नहीं निकलते तो कुछ दिनों बाद शायद जिंदा ही नहीं रह पाते।
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