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Friday, July 3, 2020

चीन के 93% हैकर ग्रुप्स को वहां की आर्मी फंडिंग करती है, चीन ने 7 साल पहले कहा था- साइबर स्पेस अब जंग का नया मैदान

23 मई 2017 को सुबह 10 बजकर 30 मिनट पर असम के तेजपुर एयरबेस से सुखोई-30 फाइटर जेट ने उड़ान भरी। थोड़ी ही देर बाद 11 बजकर 10 मिनट पर इससे संपर्क टूट गया। इस जेट में स्क्वाड्रन लीडर डी पंकज और फ्लाइट लेफ्टिनेंट एस अचुदेव थे। तीन दिन तक चले सर्च ऑपरेशन के बाद इस जेट का मलबा 26 मई को तेजपुर एयरबेस से 60 किमी दूर घने जंगल में मिला। इस क्रैश में दोनों पायलट्स की मौत हो गई थी।

इस घटना का जिक्र इसलिए क्योंकि भारतीय सेना के इन्फोर्मेशन सिस्टम के पूर्व डायरेक्टर जनरल रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल पीसी कटोच ने एक लेख में लिखा था कि ये फाइटर जेट के क्रैश होने की वजह तकनीकी खराबीनहीं, बल्कि चीन कासाइबर अटैक था।

साइबर वॉर को लेकर चीन का रवैया हमेशा आक्रामक रहा है। 2009 में अमेरिकी पॉलिसी थिंक टैंक RAND की एक स्टडी आई थी। इस स्टडी में चीन के एक डिफेंस एक्सपर्ट के हवाले से लिखा गया था कि 20वीं सदी में जैसे परमाणु युद्ध था, वैसे ही 21वीं सदी में साइबर युद्ध है। कहने का मतलब येथा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए साइबर युद्ध अब बेहद जरूरी हो गया है।

15-16 जून को लद्दाख में गलवान घाटी के पास भारत-चीन की सेना के बीच हिंसक झड़प भी हुई थी। उसके बाद ही भारत पर चीनी हैकर्स की ओर से साइबर अटैक होने का अंदेशा था और इसके लिए एडवाइजरी भी जारी हुई थी। हिंसक झड़प के बाद चीनी हैकर्स ने 5 दिन तक 40 हजार 300 से ज्यादा बार साइबर हमले किए थे।

अमेरिका की देखा-देखी चीन ने भी शुरू किया साइबर वॉर
चीन में साइबर वॉर के लिए बकायदा हैकर्स ग्रुप हैं और माना जाता है कि दुनिया की सबसे बड़ी हैकर आर्मी चीन के पास है। जिसमें 3 लाख से ज्यादा हैकर्स काम करते हैं। इनमें से 93% हैकर ग्रुप्स को वहां की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और चीनी विदेश मंत्रालय से फंडिंग भी होती है।

चीन ने इन सबकी शुरुआत अमेरिका को देखकर की थी। दरअसल, 90 के दशक में इराक के खिलाफ अमेरिका ने युद्ध छेड़ दिया था। मकसद था कुवैत को इराक के कब्जे से छुड़ाना। इस लड़ाई में अमेरिका का साथ ब्रिटेन, फ्रांस, सऊदी अरब और कुवैत समेत 34 देशों ने दिया था। इस लड़ाई को गल्फ वॉर या खाड़ी युद्ध कहते हैं।

इस युद्ध में अमेरिकी सेना ने तकनीकका सहारा लिया था। उस समय इसे साइबर वॉरफेयर नहीं, बल्कि इन्फोर्मेशन वॉरफेयर कहते थे। यानी तकनीक के जरिए दूसरे देश के इन्फोर्मेशन सिस्टम में सेंध लगाना और उससे सारा डेटा निकालना। इस तकनीक से अमेरिका और उसके समर्थित देशों को काफी मदद मिली थी और आखिर में जीत भी इन्हीं की हुई।

खाड़ी युद्ध में तकनीकका इस तरह इस्तेमाल देखने के बाद ही चीन को भी महसूस हुआ कि कैसे नई तकनीक, खासतौर से इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी एक युद्ध से बचने में बहुत जरूरी भूमिका निभा सकती है। गल्फ वॉर के दो साल बाद 1993 में चीनी सेना ने अपनी स्ट्रैटेजिक गाइडलाइन में तय किया कि कैसे किसी युद्ध को जीतने के लिए मॉडर्न टेक्नोलॉजी मददगार साबित हो सकती है।

अमेरिकी एजेंसियों के मुताबिक, पीएलए की यूनिट 61358 ईमेल के जरिए हैकिंग करती है। - फाइल फोटो

7 साल पहले चीन ने कहा था- जंग जीतने के लिए साइबर स्पेस जरूरी
गल्फ वॉर के करीब 13 साल बाद 2003 में इराक पर फिर अमेरिका और यूरोपीय देशों ने हमला कर दिया। इस बार मकसद था इराक की सत्ता से सद्दाम हुसैन को बेदखल करना। अप्रैल 2003 में सद्दाम हुसैन की सत्ता चली गई। इस युद्ध में भी तकनीक की मदद ली गई।

2004 में इराक युद्ध के एक साल बाद चीन ने फिर गाइडलाइन में बदलाव किया और इस बार तय किया कि कैसे आर्म्डफोर्सेस को युद्ध जिताने में सूचनाएं जरूरी फैक्टर साबित होती हैं।

इसके बाद 2013 में मिलिट्री साइंस एकेडमी की एक स्टडी आई थी, जिसमें चीन ने पहली बार माना था कि आज के समय में किसी जंग को जीतने में साइबर स्पेस बहुत जरूरी है।

इतना ही नहीं, पीएलए का यही मानना है कि युद्ध के हालात में सेना पर खर्च करने की बजाय दुश्मन देश के खिलाफ साइबर वॉर छेड़ना फायदे का सौदा है।

अब क्या कर रहा है चीन?
चीन में दो तरह की आर्मी काम कर रही है। पहली तो पीपुल्स लिबरेशन आर्मी है और दूसरी है साइबर आर्मी। चीन में साइबर आर्मी को भी उतना ही महत्व मिलता है, जितना पीएलए को मिलता है। 2019 में अमेरिका के डिफेंस डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट आई थी। इसके मुताबिक, चीन की साइबर आर्मी में जो हैकर्स हैं, उनका काम भी बंटा हुआ है। ये लोग दूसरे देशों की खुफिया जानकारियां जुटाने और उनके कम्प्यूटर नेटवर्क में हमले करते हैं।

इतना ही नहीं, चीन की पीएलए के पास बकायदा एक हैकिंग यूनिट भी है, जिसे पीएलए यूनिट 61398 के नाम से जाना जाता है। इसका हेडक्वार्टर 12 मंजिला है, जो शंघाई के पुडोंग में है। पीएलए की इस यूनिट के हेडक्वार्टर के बारे में दुनिया को 2013 तक पता ही नहीं था। 2013 में अमेरिकी कम्प्यूटर सिक्योरिटी फर्म मैनडिएंट ने इसकी बिल्डिंग के बारे में और इसके काम के बारे में 60 पन्नों की एक स्टडी में बताया था।

हालांकि, पीएलए की इस यूनिट का चीनी सेना के रिकॉर्ड में कहीं जिक्र नहीं है। लेकिन, ये भी सच है कि ये यूनिट दुनियाभर में हैकिंग करती है। साइबर अटैक करती है। नवंबर 2008 में अमेरिकी एजेंसियों ने कहा था 61398 यूनिट ईमेल के जरिए हैकिंग करती है। ये पहले ईमेल करती है और ईमेल पर क्लिक करते ही उसके सिस्टम में सेंध लगा देती है।

चीन ने हाल ही में इन्फोर्मेशन वॉर के लिए एक नई स्ट्रैटजी अपनाई है, जिसे "इंटिग्रेटेड नेटवर्क इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर' यानी INEW नाम दिया है। इसके दो काम हैं। पहला- कम्प्यूटर नेटवर्क पर हमले करना और दूसरा- इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर।

इसके अलावा पीएलए में ब्लू फोर्स इन्फोर्मेशन वॉर नाम से भी एक यूनिट है, जो जैमिंग और नेटवर्क अटैक का काम करती है।

नेवी के रियर एडमिरल मोहित गुप्ता डिफेंस साइबर एजेंसी के पहले चीफ हैं। ये एजेंसी दूसरे देशों, खासकर पाकिस्तान और चीन से होने वाले साइबर अटैक के खतरे से निपटेगी।

चीन से निपटने की क्या है भारत की तैयारी?
मई 2019 में भारत में साइबर हमलों से निपटने के लिए डिफेंस साइबर एजेंसी का गठन हुआ था। इस एजेंसी का काम चीन और पाकिस्तान के हैकर्स की ओर से होने वाले साइबर हमले को रोकना है। ये एजेंसी तीनों सेनाओं को मदद करती है।

एजेंसी के बारे में ज्यादा जानकारी तो मौजूद नहीं है। लेकिन, कुछ रिपोर्ट्स में ऐसा कहा जाता है कि एजेंसी के पास नेटवर्क हैक करने, माउंट सर्विलांस ऑपरेशन करने, हनी पॉट्स रखने, हार्ड ड्राइव और सेलफोन से डिलीट किए गए डेटा को रिकवर करने, एन्क्रिप्टेड कम्युनिकेशन और चैनल्स को ब्रेक करने जैसी क्षमता है।



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चीन की पीएलए के पास बकायदा एक हैकिंग यूनिट भी है, जिसे पीएलए यूनिट 61398 के नाम से जाना जाता है।


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