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Thursday, April 16, 2020

हमारे आसपास मौजूद ‘कुंतियों’ को सलाम

आ पको याद होगा कि कैसे दुर्योधन ने सबसे भयानक युद्ध शुरू होने के बहुत पहले कर्ण को मां कुंती से मिलवाया था। वे बड़ी जिज्ञासा से कर्ण के कान की बालियां देखती हैं और उनसे पूछती हैं ‘तुम्हें ये कहां से मिलीं’? और वे कहते हैं, ‘बचपन से मेरे पास हैं। लेकिन मुझे नहीं पता ये निकलती क्यों नहीं हैं, तब भी जब मैं इन्हें निकालना चाहता हूं।’ यह उत्तर सुनने के बाद उन्हें पता चल गया था कि कर्ण उनके पहले पुत्र हैं और फिर अचानक उन्हें चक्कर आते हैं और वे नीचे गिर जाती हैं। दुर्योधन और कर्ण, दोनों मिलकर उन्हें पकड़ते हैं। यह दृश्य यहीं खत्म होता है और हम आगे बढ़ते हैं। खुद के पांच पुत्र, पांडव होने के बावजूद कई बार कुंती के भीतर की मां चाहती थीं कि वे कर्ण को बताएं कि वही उनकी जैविक मां हैं। लेकिन उनका विवेक उन्हें ऐसा करने से रोक देता है क्योंकि उन्हें लगता है कि कर्ण दुर्योधन की दोस्ती में ही सुरक्षित रहेंगे।

वे इस बात को स्वीकार करती हैं कि उन्होंने जानबूझकर कर्ण के सामने अपने खून के रिश्ते का खुलासा नहीं किया क्योंकि उन्हें लगता था कि पांडवों के खून के प्यासे दुर्योधन को अगर पता चल गया कि कर्ण पांडवों का बड़ा भाई है, तो वह उसे भी मार देगा। आपने यह दृश्य ‘धर्मक्षेत्र’ धारावाहिक में देखा होगा जहां वे चित्रगुप्त के दरबार में इस विचार को स्वीकारती हैं। मुझे महाभारत का यह हिस्सा तब याद आया, जब मुझे अजमेर निवासी 25 वर्षीय नर्स यशवंती गरवार के बारे में पता चला, जिसका 2 साल का बेटा है और वह अपने ही बेटे से नहीं मिल सकती थी। हालांकि 22 दिनों तक मोबाइल फोन पर बच्चे का रोना सुनकर उसका दिल कांपता रहता था।

यशवंती को तीन महीने पहले पाली के रास सरकारी अस्पताल में बतौर नर्स नौकरी मिली थी। वह अपने बेटे युवान के साथ पाली में रहने लगी थी, लेकिन कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों की वजह से उसने वापस अजमेर जाकर युवान को अपने माता-पिता के पास छोड़ दिया था। अपने बेटे के बारे में चिंतित और उसे देखने की बेकरारी की वजह से उसने खास अनुमति ली और 12 अप्रैल को उससे मिलने गई। उसने स्नान किया, अपने कपड़े बदले और फिर युवान को गोद में लिया। लेकिन यशवंती को 24 घंटे में फिर रवाना होना पड़ा क्योंकि कोरोना के खिलाफ ये युद्ध अभी तक खत्म नहीं हुआ है। अब
हर शख्स ये महसूस कर सकता है कि जो माता-पिता क्वारेंटाइन में हैं, उनके बच्चों पर क्या
गुजर रही होगी। बिल्कुल कुंती की तरह जो अपने ही बेटे को बता नहीं सकती थी कि वह उसकी मां है। यशवंती के पति हिमांशु रेलवे में काम करते हैं और उन्हें कभी भी ड्यूटी पर बुलाया जा सकता है। यशवंती की मां सुशीला देवी वीडियो कॉल पर युवान को उसकी मां को दिखाती रहेंगी।

माधवी अया एक और ऐसी कुंती हैं, जो समझती थीं कि अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए उनके साथ क्या हो रहा था। वे भारत में डॉक्टर थीं। फिर अमेरिका में बसने के बाद ट्रेनिंग लेकर वे वहां फिजिशियन असिस्टेंट बन गईं। उन्होंने 12 साल तक ब्रुकलिन के एक अस्पताल में काम किया था। वे वहां देख सकती थीं कि कैसी बेरहमी से कोरोना पूरे शहर को प्रभावित कर रहा है। कई रोगियों की देखभाल करने के कुछ दिन बाद, माधवी भी उनमें से एक बन गईं। माधवी 61 साल की थीं। वे जब अस्पताल में अकेली थीं तो वे लॉन्ग आईलैंड में रह रहे अपने पति और 18 साल की बेटी से केवल 3 किलोमीटर दूर थीं। जब उनकी बेटी ने उन्हें एक मैसेज भेजा, जिसमें लिखा था, ‘आई मिस यू मम्मी’, तो उन्होंने उसका जवाब दिया, ‘मम्मी जल्द वापस आएगी।’ लेकिन दुर्भाग्य से वे अपना वादा नहीं निभा पाईं। अकेले रहना सिर्फ मुश्किल नहीं है बल्कि एक चुनौती है।



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Salute to the 'kuntis' around us


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