कु छ दिन पहले मुझे वॉट्सएप पर एक अनजान नंबर से मैसेज आया। मुझे यह समझने में कुछ सेकंड लगे कि मैसेज उस सब्जीवाले का था, जो लॉकडाउन के बाद से मेरी कॉलोनी में आकर सब्जी बेच रहा है। वह बस यह जानना चाहता था कि क्या मैं सब्जी खरीदना चाहता हूं और अगर हां, तो क्या-क्या चाहिए। वॉट्सएप पर फोटोज थीं, जिन पर रेट भी लिखे थे। तब से ऐसा रोज होने लगा और कल के मैसेज में आम खरीदने का विकल्प भी था। जैसे ही मैंने मैसेज वापस भेजा, उसने मेरा सामान पैक किया और मुझे बिल भेज दिया। जब उसने सामान मेरे घर पहुंचा दिया और मेरी पत्नी ने उसकी क्वालिटी जांचकर धो लिया तो मैंने सब्जी वाले को किसी एप से पैसे भेज दिए। अगर कुछ सब्जियों की क्वालिटी मेरी पत्नी को ठीक नहीं लगती है, तो वह बिना कोई सवाल उठाए उन्हें वापस ले जाता है।
इस हफ्ते इरफान और ऋषि के गम में डूबे मेरे शहर से दूर जुड़वां शहर हैदराबाद और सिंकदराबाद में डाकिए कई रहवासियों के घर बंगानापल्ले आम पहुंचा रहे हैं। इसके लिए तेलंगाना के स्टेट हॉर्टिकल्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने भारतीय डाक के साथ अनुबंध किया है, जिसके तहत स्थानीय रहवासी वॉट्सएप पर ऑर्डर देते हैं और यूपीआई एप्स, गूगल पे या फोन पे से पेमेंट कर देते हैं। अब वापस मुंबई आते हैं। यहां भारतीय डाक सुनिश्चित कर रही है कि गोवा, सिंधुदुर्ग और रत्नागिरि के किसानों द्वारा उगाए गए जीआई टैग वाले अल्फांसो आम ग्राहकों तक पहुंचें। इसके लिए गाड़ियों का एक काफिला बनाया है और इसे ‘इंडिया पोस्ट किसान रथ’ का नाम दिया है। अब तक कई टन आम ग्राहकों तक पहुंच चुके हैं।
इस बीच काम तलाश रहे गोवा के मोटर साइकिल पायलट रोजी-रोटी के लिए होम डिलीवरी पर नजर जमाए हुए हैं। जी हां, लॉकडाउन के बाद से पणजी के मोटरसाइकिल पायलट्स के पास काम नहीं है, साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग गाइडलाइंस के मुताबिक अभी दोपहिया वाहन पर पीछे सवारी नहीं बैठा सकते। राज्य के गोवा मोटरसाइकिल टैक्सी राइडर्स एसोसिएशन में 417 मोटरसाइकिल पायलट पंजीकृत हैं। अब वे सरकार से खाने और दवाई की डिलीवरी और घर में फंसे बुजुर्गों के लिए रोजमर्रा का सामान पहुंचाने की अनुमति देने की मांग कर रहे हैं।
वे सभी पहले से ही ये काम कर रहे हैं, लेकिन अब आधिकारिक अनुमति चाहते हैं।
कभी एक रुपए भी कम न करने वाले मेरे सब्जी वाले से लेकर गोवा के मोटरसाइकिल पायलट्स तक के रवैये में आए बदलाव और भारतीय डाक के डाकियों की बदली भूमिका से मुझे दो विपरीत दृष्टिकोण याद आए। पहला है, महात्मा बुद्ध के ‘अष्टांग मार्ग’ में से एक ‘सम्यक जीविका’ (सम्यक यानी सही), जो ऐसा पेशा अपनाने को कहता है, जिसमें इंसानों और प्रकृति को शारीरिक या नैतिक रूप से नुकसान न पहुंचता हो।
दूसरा है, अर्थशास्त्र के पितामह एडम स्मिथ का दृष्टिकोण, जिन्होंने कहा था, ‘हमें भोजन किसी कसाई, शराब बनाने वाले या बेकरी वाले की दया से नहीं मिलता है, बल्कि यह उनके खुद के हित के लिए किए गए कार्यों का प्रतिफल है।’
सब्जी वाले से लेकर, डाकिए जैसे सरकारी कर्मचारी तक, सभी नए आइडिया के साथ खुद में बदलाव ला रहे हैं, क्योंकि उन सभी को रोजी-रोटी कमानी है और नौकरी बचानी है। यह अब खुला सच है कि कुछ नौकरियां जाएंगी। लेकिन इसी के साथ आंत्रप्रेन्योरशिप के रास्ते से नई नौकरियां भी उभरेंगी। इसलिए यह खुद को डूबने से बचाने और टिके रहने की दिशा में पहला कदम है। और इसके लिए ‘खुद के हित’ के बारे में सोचना गलत नहीं है, जैसा कि एडम स्मिथ ने कहा। लेकिन अगर आप इसमें थोड़ी ‘सही जीविका’ का विचार भी जोड़ दें, जैसा महात्मा बुद्ध चाहते थे, तो यह सोने पर सुहागा हो जाएगा।
फंडा यह है कि आने वाले दिनों में आंत्रप्रेन्योरशिप नई नौकरी होगी। इससे पहले कि देर हो जाए, आंत्रप्रेन्योरशिप के इस नए विचार को चुनिए।
मैनेजमेंट फंडा एन. रघुरामन की आवाज में मोबाइल पर सुनने के लिए 9190000071 पर मिस्ड कॉल करें।
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