कोरोना के इस दौर में कुछ शब्द जिंदगी में ऐसे उतर गए हैं कि हैं तो हितकारी, पर उनकी बात करने पर एक अजीब सी निगेटिविटी उतर आती है। क्वारेंटाइन, आइसोलेशन, टेस्टिंग, सोशल डिस्टेंसिंग, हॉट स्पॉट, रेड जोन और सबसे विकराल लॉकडाउन। ये सारे शब्द हमारे हित के लिए हैं, पर आज ऐसा लगता है इनका उच्चारण करो तो एक सिहरन सी आ जाती है शरीर में। तो क्यों न अब कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग करें जिनमें जीवन के संदेश हों। अभी कोरोना के दौर के जो शब्द हैं, ये जीवन बचाने के हैं, लेकिन कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग भी कीजिए जो जीवन जीने के हैं। जैसे- कोई पूछे कैसे हैं?
तो कहिएगा अभाव के आनंद हैं। कोई प्रश्न करे- क्या करेंगे? तो आप कहिए खुश रहेंगे-खुश रखेंगे। अगर पूछा जाए- क्या सोच रहे हैं? तो कहिए- कुछ हम करें-कुछ होने दें। कोई पूछ ले- क्या कर रहे हैं इन दिनों? तो कहिएगा- कर हम रहे हैं-करा कोई और रहा है।
जब आप के कृत्य में ‘मैं’ का बोध समाप्त हो जाए तो इसे निष्कामता कहते हैं और जिसके भीतर निष्कामता उतरी, उसे कोई अशांत नहीं कर सकता। सालों मेहनत करके आपने जो भी साधन, सुविधाएं अर्जित की, आज वो कोई काम नहीं आ रही हैं। तो अपने आप को समझाइए कि यह जो अभाव का दौर आया है, ये सब बाहर ही बाहर है। भीतर तो सदैव से आनंद है। अभाव के आनंद को जितना अच्छे से समझ लेंगे, आप कोरोना के साइड इफेक्ट से उतना ही बचे रहेंगे।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3bWE6HO
No comments:
Post a Comment