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Friday, May 1, 2020

इस समय आपके हर विचार, हर शब्द में आशीर्वाद होना चाहिए

घर में हम अपने परिवार के साथ बैठे हैं, आपस में बातचीत कर रहे हैं। एक-दूसरे को बीच-बीच में याद भी दिला रहे है। पूछ रहे हैं- बच्चे ने हाथ धोए- गुड। उसे बस इतना ही कहना है। ये नहीं कहना कि हाथ धोओ नहीं तो आपको वायरस पकड़ लेगा। अपने बच्चे को आशीर्वाद दीजिए, दुआ दीजिए। याद करिए जब वो बच्चा घर से बाहर जाता था तो आप कहते थे कि ध्यान से गाड़ी चलाना। लेकिन अगर कोई कहे कि ध्यान से गाड़ी चलाओ नहीं तो एक्सीडेंट हो जाएगा। यह आशीर्वाद नहीं है। आपने उसे जाते-जाते एक्सीडेंट शब्द बोलकर क्यों भेजा? आपके संकल्पों में एक्सीडेंट क्यों है?

इसी तरह कहिए- हाथ धो लो। यह मत कहिए- तुम्हें पता है कोरोना कितना बढ़ गया है। तुम्हें हो गया तो घर में औरों को हो जाएगा। ध्यान रखिए संकल्प से सिद्धि होती है। जैसे ही कोई घर में नकारात्मक बोलना शुरू करे तो आपकी जिम्मेदारी है कि उसको याद दिलाना कि संकल्प सिद्ध होते हैं, ध्यान से बात करिए। क्योंकि हमें समाज से डर को खत्म करना है, इम्युनिटी सिस्टम को बढ़ाना है। हमें इस वायरस को खत्म करना है तो हमें यही विचार उत्पन्न करना पड़ेगा।

ब्रह्माकुमारीज में हृदय के रोगियों के लिए एक प्रोजेक्ट चलाया जाता है। जिसमें पॉजिटिव संकल्प द्वारा हार्ट के ब्लॉकेज को खोला जाता है। धमनी ब्लॉक है, लेकिन लाइफ स्टाइल का ध्यान रखते हैं। लेकिन, विचार क्या उत्पन्न करते हैं? ध्यान के द्वारा स्वयं को परमात्मा से जोड़ कर विजुअलाइज करते हैं कि हार्ट की ब्लॉकेज साफ हो रही है। उस समय हम यही संकल्प करते हैं कि मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं, मैं निरोगी हूं। अभी बीमार हैं, लेकिन उस बीमारी को खत्म करना है।

धमनी ब्लॉक है, लेकिन विचार यह उत्पन्न करना है कि वो ब्लॉकेज खुल रहे हैं, हमें वो सोचना है जो हम सच बनाना चाहते हैं। इसे अगर हम बार-बार रिवाइज करेंगे तो इससे हमारी शब्दावली बदल जाएगी। अगर आपने इतना ध्यान रखा तो आधे से ज्यादा डर को तो यही खत्म कर देगा। फिर हम अपनी सोच को बदलेंगे। किसी को ध्यान रखने के लिए बोलिए, लेकिन दुआ देकर बोलिए। आशीर्वाद देकर बोलिए, कभी किसी को डराकर मत बोलिए। आपने पॉजिटिव सोच के द्वारा घर में जो उच्च ऊर्जा उत्पन्न की उससे बच्चे स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं। आज हमें जानकारी है, नॉलेज है, लेकिन बच्चे के अंदर हम कितना डर पैदा कर रहे हैं। हाथ धोओ नहीं तो कुछ हो जाएगा। इससे बच्चों के अंदर घबराहट उत्पन्न हो जाएगी। इसलिए यह समय है जब हमारे हर विचार, हर शब्द में आशीर्वाद होना चाहिए। यानी आप ठीक हैं, आप निरोगी हैं, आप निडर हैं और आप हमेशा रहेंगे।
सोच का असर तो हमेशा होता है। जब हम कहते हैं संकल्प से सिद्धि... तो इसका मतलब है कि आपने एक विचार उत्पन्न किया और वह सिद्ध हो जाएगा। मैंने एक विचार किया कि मैं गिर सकती हूं। मैं बहुत बार वही सोचती हूं। बहुत बार वही बोलती हूं। फिर थोड़ी देर के बाद मेरे आसपास के लोग भी वैसा ही सोचना और बोलना शुरू कर देते हैं। तो हमारे उस संकल्प के सिद्ध होने के मौके कई गुना बढ़ जाते हैं। इस समय सिर्फ हमारी अकेले की सोच वो नहीं चल रही है। ये सामूहिक संचेतना भी हमारे ऊपर हावी हो रही है। थोड़ी देर हम उसे दूर करना भी चाहते हैं, लेकिन आप देखिए हम फिर भी उसके प्रभाव में आ जाते हैं। क्योंकि यह सिर्फ आपकी समस्या नहीं है। यह पूरे विश्व की समस्या है। इस समय पूरे विश्व की ऊर्जा एक जैसी है।
पहले ज्यादातर हमारी समस्या अपनी हुआ करती थी या ज्यादा से ज्यादा हमारे दफ्तर की हुआ करती थी या फिर हमारे घर की हुआ करती थी। आज जब एक वैश्विक समस्या है तो पूरे विश्व की सोच भी एक जैसी है। हम अपने आपको पांच मिनट उधर से हटाते हैं तो देखते हैं कि मैं नहीं सोच रही हूं तो कोई और सोच रहा है। हम नहीं बात कर रहे हैं तो पड़ोस में कोई और बात कर रहा है। हम इस बीमारी से दूर होने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन फिर पांच मिनट के बाद हम वही बात करने लगते है। मतलब हम उस संक्रमण को कैच कर रहे हैं।

भावनात्मक संक्रमण उसे कैच कर रहा है। इसलिए इस समय हमारा विचार सिर्फ औसत नहीं हो सकता। हम अपने आपका ध्यान हटाने के लिए थोड़ी देर टीवी पर धारावाहिक या फिल्म देख लेते हैं। लेकिन उसकी ऊर्जा क्या है? अगर उसकी ऊर्जा में वायरस की बात नहीं है, लेकिन किसी और बात की वजह से हिंसा है, एंग्जायटी है, डर है, अपराध है, तनाव है तो मेरी वायब्रेशन फिर से कैसी हो गई? हमारा मन लो फ्रीक्वेन्सी पर चला गया। फिर हमने किसी और से किसी दूसरी समस्या के बारे में बात की।

स्वभाविक है कि हमने उसमें भी वैसा ही डर और अशांति उत्पन्न कर दी। हमें कुछ ऐसा करना है जिससे हमारी वायब्रेशन ऊपर उठे। सिर्फ टाइम पास करना हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए, बल्कि हमारा मानसिक स्तर भी ऊंचा उठना चाहिए।

(यह लेखिका के अपने विचार हैं।)



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