अच्छे-अच्छों का अभिमान पी गया कोरोना। मतलब यह तो समझ में आ रहा है कि अभिमान किसी का नहीं बचा, लेकिन लगातार बने रहे लॉकडाउन में एक नुकसान और हुआ। वह है कुछ लोगों के स्वाभिमान को भी ठेस लग गई। अभिमान वह ऊर्जा है जो भीतर से बाहर निकलती है और प्रदर्शन में विश्वास करती है। स्वाभिमान वह ऊर्जा है जो भीतर जाकर मनुष्य को विनम्र बनाती है, संकल्पित करती है। अभिमान का अंत अशांति में होता है, स्वाभिमान का आखरी छोर शांति है। जैसे-जैसे लॉकडउान खत्म हो, यदि आप थोड़ा भी संजीदा हैं तो अपने आसपास जितने रिश्ते हैं, उन पर ध्यान दीजिए।
पिछले दिनों उनके स्वाभिमान को ठेस लगी होगी। मैं ऐसे अनेक लोगों के संपर्क में आया जिनके यहां काम करने वालों का अभाव था। बहुत सी माता-बहनों ने घर के काम खुद किए। पुरुष उनके सहयोगी की भूमिका पूरी तरह नहीं निभा पाए। इनमें ऐसी माता-बहनें भी हैं जो बाहर रहकर वो सारे काम करती रहीं जो पुरुष ने किए होंगे। यह उनके स्वाभिमान को सम्मान देने का समय है। हम कोरोना योद्धाओं का मान कर रहे हैं। हमारी माता-बहनों के बीच ऐसे अनेक योद्धा हैं जिन्होंने घर में रहकर युद्ध लड़ा है। परिवार बचाने का, परिवार चलाने का युद्ध। इनमें अपने बच्चों का स्वाभिमान भी टटोलें, वह भी आहत हुआ होगा। तो मातृशक्ति और बच्चों का भी सम्मान करिए। वे भी नमन के पात्र हैं।
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