पिछले दो दिनों से हमें कई ओर से एक नई बात सुनने को मिल रही है। सरकारी अधिकारी और प्रबुद्ध वर्ग के कई लोग एक ही लहजे में यह बात कह रहे हैं। वे कह रहे हैं, ‘आइए, वायरस के साथ रहना सीखें!’ अगर यह सही है तो दो चीजें होने जा रही हैं। अमीर कम से कम लॉकडाउन खुलने के कुछ दिनों तक तो जरूरी सामान खरीदने मॉल नहीं जाएंगे और प्रवासी मजदूर या कामगार बड़े शहरों में 10 बाय 10 के कमरे में 10 लोगों के साथ नहीं रह पाएंगे। इस अनिवार्यता ने प्रवासी कामगारों और किराना दुकान वालों के लिए एक बिजनेस आइडिया का रास्ता खोल दिया।
कोविड-19 ने पड़ोस की साधारण किराना दुकान के मालिकों की किस्मत बदल दी है, जो इससे पहले कई सालों से सुपर मार्केट चेन्स के खिलाफ जंग लड़ रहे थे और हारते नजर आ रहे थे।
आज यही स्थानीय किराने वाले कई रहवासियों के लिए सुपर हीरो बन गए हैं। लेकिन उनमें से कई चिंतित हैं कि क्या लॉकडाउन खुलने के बाद भी उनकी दुकानें इसी तरह चलेंगी। अभी हर किराना वाले की अलमारियां दो दिन में ही खाली हो जा रही हैं। यह खुशकिस्मती बरकरार नहीं रहेगी अगर वे ऐसी सुविधाएं नहीं देंगे, जो मॉल में दी जाती हैं। और सबसे जरूरी चीज है डिस्काउंट यानी छूट।
मुझे याद है कि मद्रास हाइकोर्ट के पास, अरमेनियन स्ट्रीट में ‘पेरिस कॉर्नर’ नाम का ऑफिस वाला व्यस्त इलाका है, जहां ‘नाथन स्टोर’ नामक जनरल स्टोर है। इस स्टोर ने 25 साल पहले प्रिंट दाम से कम कीमत पर उत्पाद बेचना शुरू किया था। चूंकि समाज के हर तबके के लोग हाइकोर्ट आते-जाते हैं, इसलिए सभी के लिए ‘डिस्काउंट’ आकर्षण का कारण होता था। दिन का कोई समय ऐसा नहीं होता था, जब इस स्टोर के बाहर लंबी लाइन न लगी हो। उनकी दुकान पर गरीबों की जरूरतों और अमीरों की लक्जरी, दोनों तरह का सामान मिलता था और दोनों ही समुदायों को डिस्काउंट अच्छा लगता था। इसलिए अगर आधुनिक किराना वाले चाहते हैं कि ये कार मालिक उनकी दुकान पर आते रहें, तो उन्हें आकर्षित करने का कोई तरीका अपनाना होगा जैसे, ‘प्रिंट दाम पर फिक्स प्रतिशत डिस्काउंट’, वह भी पूरे साल।
वे प्रवासी कामगार जो घर लौट आए हैं, मैं उनका ध्यान राजस्थान के मनरेगा विभाग की ओर खींचना चाहूंगा। विभाग ने सरकार के समक्ष ग्रामीण इलाकों के सरकारी स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों की खाली पड़ी जगहों के अलावा व्यक्तिगत जमीनों (जो एससी/एसटी, किसानों, छोटे किसानों की हैं) पर किचन गार्डन बनाने का प्रस्ताव दिया है। इस पहल का उद्देश्य न सिर्फ स्कूली बच्चों को पौष्टिक सब्जियां देना है, बल्कि उन प्रवासियों को काम देना भी है, जो अपने राज्यों में लौट आए हैं।
प्रवासी इस पहल से कुछ सीख सकते हैं। सब्जी गरीबों की जरूरत है और कुछ लोगों के लिए ऑर्गेनिक सब्जियां लक्जरी हैं। खुली जगहें, छतें तलाशें, इन जगहों को लीज़ या कॉन्ट्रैक्ट पर लें और अपनी मेहनत लगाकर उनकी सब्जियां उगाने में मदद करें। इस तरह इस उभरती नई जरूरत से पैसा कमाएं।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 2019 में आठवीं तक के सभी सरकारी स्कूलों को निर्देश दिए थे कि वे मिड-डे मील में किचन गार्डन में उगाई गई सब्जियां इस्तेमाल करें और इसके लिए बच्चों से सब्जियां उगाने को कहें। इस साल कोविड-19 की वजह से पहले की कई घंटों की कक्षाओं का नुकसान हुआ है, इसलिए अब शायद बच्चों के लिए किचन गार्डन में समय खर्च करना संभव न हो। इसलिए यह प्रवासियों के लिए अपने नजदीकी स्कूल या सरकारी संस्थान के साथ, उनकी जमीन पर खेती करने के लिए करार करने का बिल्कुल सही समय है।
फंडा यह है कि लोअर मिडिल क्लास से लेकर अपर क्लास तक के कुछ तय ग्राहकों को सेवाएं देने के लिए एक स्पष्ट प्लान बनाएं, जिससे स्थायी आय हो सके। इसकी सही तरकीब इसमें छिपी है कि आप एक ही उत्पाद को कैसे पेश करते हैं, जैसे सब्जी किसी की जरूरत बन सकती है और किसी के लिए लक्जरी!
मैनेजमेंट फंडा एन. रघुरामन की आवाज में मोबाइल पर सुनने के लिए 9190000071 पर मिस्ड कॉल करें।
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