हमारे शास्त्रों में कई कथाएं ऐसी हैं कि दैत्यों को भी पूजना पड़ता है। दैत्यों के पास सबसे बड़ी योग्यता होती है उनकी ताकत। उसी ताकत के आधार पर उन्होंने ऐसी-ऐसी तपस्याएं कीं कि परमात्मा को वरदान देना पड़े। ईश्वर की व्यवस्था ऐसी होती है कि जिसने परिश्रम किया, तप किया और जिसने पुरुषार्थ से अपने जीवन को जोड़ा, उसे कुछ देना पड़ता है। यहां भगवान भेदभाव नहीं करते, लेकिन वे जानते हैं कि वरदान का दुरुपयोग होगा, इसलिए हर वर के भीतर एक छोटा सा शाप डाल देते हैं।
जैसे रावण को वरदान था किसी के हाथ मरेगा नहीं, लेकिन शाप के रूप में उसके साथ यह भी जुड़ा था कि ‘मनुष्य और बंदरों को छोड़कर’। ऐसा ही हुआ। वह इन्हीं के हाथों मारा गया। इसी तरह कोरोना रूपी इस दैत्य के पास यदि वरदान है कि यह आसानी से नहीं मरेगा, तो इसके साथ शाप भी है सोशल डिस्टेंसिंग का तो इसी से इसे मारें। जो लोग लॉकडाउन-3 से गुजर रहे हैं उन्हें ‘आगे क्या होगा’ की मनसिकता और मुसीबत में डाल सकती है।
ये स्वर अब स्पष्ट सुनाई देने लगे हैं कि अब घर में रुका नहीं जाता। अंग्रेजी में डिस्टेंस का एक अर्थ उदासीन भी होता है। यानी निराश न होना। लॉकडाउन के रूप में अब और जितने भी दिन घर में रहना पड़े, इस अवसर का लाभ लेते हुए खुद को योग से जोड़ लें। आगे जैसे भी संसार में उतरना है, निराश होकर नहीं, बल्कि एक नई ताकत, नए आत्मविश्वास के साथ उतरना है..।
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