कोरोना कालखंड में मनुष्य को यादों के गलियारों में बार-बार विचरण करने का मन होता है। यादों का क्लोरोफार्म लिए मन ही मन प्रेम के नगमे गुनगुनाना बहुत भाता है। इस मानसिक कवायद की उच्चतम सतह यह है कि जो अघटित रहा, उसे भी घटित मानकर यादों की जुगाली करना। अवचेतन में यथार्थ, कल्पना जैसा हो जाता है और कल्पना यथार्थ का लबादा पहनकर सामने खड़ी हो जाती है। कहते हैं योग का शिखर यह है कि आप अवचेतन में योग क्रिया कर रहे हैं और यथार्थ में आपकी सेहत को उस ‘अघटित’ से लाभ भी हो रहा है। ठीक ऐसा ही है अघटित की याद की जुगाली करना।
बहरहाल, इसी विचार के कैलिडियाेस्कोप में रंगीन कांच के नन्हे टुकड़ों के द्वारा बनाई छवियों को देखिए। गुरु दत्त को हमेशा तन्हाई पसंद थी। उन्हें उदय शंकर के अलमोड़ा स्थित नाट्य शाला में लिए प्रशिक्षण की याद आती है। गुरु दत्त ने अपनी परीक्षा के लिए नृत्य संयोजन किया कि नाचने वाले का शरीर एक सर्प ने जकड़ रखा है। नचाने वाले ने सांप का मुंह पकड़ा है। नृत्य जारी है और सांप उसे डंसने का प्रयास कर रहा है। कई वर्ष की सर्प-मनुष्य जद्दोजहद के बाद 10 अक्टूबर 1964 को सर्प ने गुरु दत्त को डंस लिया।
डॉक्टरी रपट इसे नींद की अधिक गोलियों के सेवन द्वारा की गई आत्महत्या मानती है, परंतु कोई पोस्टमार्टम रपट मनोदशा की बात नहीं करती। पंडित नेहरू की रपट हृदयाघात बताती है, परंतु वे चीन के विश्वासघात से मरे। पांचवें दशक के सितारा मोतीलाल सलीके से जीने के इस कदर कायल थे कि उनके पास विविध रंग की सात कारेें थीं। वे कार के रंग से मैच करते सूट पहनते थे। कोरोना कालखंड में घर के भीतर मोतीलाल सूट पहनकर, हैट लगाकर चहलकदमी करते हैं। सेवक ने टेबल पर व्हिस्की रखी तो भड़क गए कि दोपहर में व्हिस्की नहीं कम्पारी पी जाती है।
आर.के.स्टूडियो में संक्रमित व्यक्ति पाए जाने पर स्टूडियो बंद है। राज कपूर बेकरार हैं अपने सहयोगियों से मिलने के लिए। उनकी पत्नी कृष्णा कपूर ने अपने लैपटॉप पर उन्हें नरगिस से रूबरू कराया। कृष्णा तो राज कपूर के जीवन की सृजन नदी की तरह रहीं और नदी को घाट बन जाने पर ऐतराज नहीं होता। नरगिस घाट, वैजयंतीमाला घाट इत्यादि कुछ घाटों ने नदी पर अतिक्रमण किया है। चेम्बूर स्थित बंगले में अशोक कुमार परिवार के साथ दोपहर का भोजन कर रहे हैं। वे केवल भरवां करेला खा रहे हैं। कीमे से भरवां करेला बनाया गया है।
पूरा परिवार जानता है कि नलिनी जयवंत गेटकीपर को टिफिन देकर गई हैं। इस तरह भरवां करेले के माध्यम से प्रेमियों में संवाद हो रहा है। दिलीप कुमार के लैपटॉप पर कोई भी बटन दबाइए, केवल मधुबाला की छवि ही उभरती है। कभी-कभी वे स्वयं को अमृतलाल नागर के ‘मानस के हंस’ के अनुरूप बनारस के घाट पर चंदन घिसते हुए देखते हैं। तुलसी बायोपिक उनका अधूरा ख्वाब है।
ख्वाजा अहमद अब्बास की बालकनी से एक पांच सितारा होटल नजर आता है। वे पटकथा में पात्र रच रहे हैं- भव्य होटल के किचन में तंदूरी मुर्गा बनाने वाला सोच रहा है अपने बच्चे के बारे में जो तंदूरी मुर्गा खाना चाहता है। शेफ अपनी पोशाक में छिपाकर मुर्गे की टांग ले जा रहा है। तलाशी में पकड़ा जाता है। इस पूंजीवादी तामझाम में वह घर का मुर्गा दाल बराबर माना जाता है। कार्टर रोड के अपने बंगले में रेखा अपनी सहेली फरजाना से कहती है कि रमेश तलवार को कहें कि ऐसी फिल्म बनाएं जिसमें रेखा अभिषेक की मां की भूमिका करे।
फिल्म का क्लाइमैक्स अदालत में होगा, जहां जया ने फरियाद लगाई है। क्या डीएनए में अवचेतन का समावेश होता है? संजीव कुमार ने कई बार इश्क किया, परंतु विवाह से कतराते रहे। संजीव कुमार ने अपने दिवंगत भाई के बेटे को गोद लिया, परंतु बालक के 10 वर्ष का होते ही वे मर गए। अपनी यादों में वे के.आसिफ के आकल्पन मजनूं को जी रहे हैं। इस आलेख के अघटित की स्मृति को फंतासी माना जा सकता है।
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