हममें से ज्यादातर लोगों ने लॉकडाउन में अपने वे शौक पूरे किए होंगे, जो आम दिनों में अपने पेशे की वजह से नहीं कर पाते। आपसे निश्चित तौर पर यह पूछा जाएगा कि आपने लॉकडाउन में क्या किया। ये कुछ इस तरह की दो कहानियां हो सकती हैं-
पहली कहानी: एक छोटे बच्चे को जन्म से कुछ महीनों बाद ही रोजाना मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर करना पड़ा, क्योंकि उसकी मां मुख्य मुंबई के फोर्ट इलाके में काम करती थी और भयंदर उपनगर में रहती थी, जो उसके काम की जगह से 40 किमी दूर था। खुशकिस्मती से बच्चे के पिता के माता-पिता मां के कार्यस्थल से आठ किमी दूर चर्नी रोड में रहते थे। इसलिए वह जब से पैदा हुआ था, अपनी मां के साथ लोकल ट्रेन में भयंदर से चर्नी रोड सफर कर रहा था और उसके दादा-दादी बहु के काम से लौटने तक उसकी देखभाल करते थे। सफर के दौरान बच्चे को खिड़की वाली सीट मिल जाती थी, क्योंकि कोई भी यात्री उसे गोद में बिठा लेता था। और उसे यह पसंद था। फिर वह खिड़की की ग्रिल से धीमे-धीमे मुड़ती, घुमावदार, कभी न खत्म होने वाली ट्रेन पर अपनी नजरें टिका देता। उसे ट्रेन से प्यार हो गया था।
वह जब आठवीं कक्षा में आया तो इस छोटे बच्चे आकाश कांबले ने दो कोच वाली लोकल ट्रेन का कार्डबोर्ड से मॉडल बनाकर अपने प्रेम का इजहार किया, जिसे काफी सराहना मिली। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और मैकेनिकल इंजीनियर बन गया। खुशकिस्मती से उसे मुंबई मोनोरेल में स्टेशन मास्टर की नौकरी मिल गई। उसने ट्रेन के मॉडल बनाना जारी रखा, लेकिन अब कार्डबोर्ड और फोम की जगह एल्युमिनियम इस्तेमाल करने लगा। लेकिन नौकरी की वजह से उसे अपने इस जुनून पर काम करने का ज्यादा समय नहीं मिलता था।
इस रेल मॉडल के शौकीन को आखिरकार लॉकडाउन के दौरान कुछ समय मिला और उसने सोचा कि यह कुछ और मॉडल्स को पूरा करने का अच्छा मौका है। पिछले पांच हफ्तों में उसने हाई क्लास ट्रेन के 11 मॉडल बनाए, जिनमें रेल इंजन से लेकर लोकल कोच तक शामिल हैं। हर रंग का शक्तिशाली डब्ल्यूएजी-8 इलेक्ट्रिक इंजन और गरीब रथ ट्रेन के दो कोच उसके पसंदीदा हैं। डीजल इंजन को पुराने, बहुत चल चुके इंजन जैसा दिखाने के लिए आकाश ने एल्युमिनियम शीट्स पर मोमबत्ती इस्तेमाल की। बतौर इंजीनियर उसके सारे मॉडल 1:35 अनुपात में हैं, यानी वे असली ट्रेन से 35 गुना छोटे हैं।
दूसरी कहानी: 41 वर्षीय अजेश सोमन होम डिकोर (घर की साज-सज्जा) कंसल्टिंग बिजनेस चलाते हैं। वे दिल्ली, मुंबई और दुबई में काम करने के बाद आठ साल से बेंगलुरु में स्थायी रूप से रह रहे हैं। अजेश ने हमेशा वेस्ट (पुराने सामान, रद्दी, कूड़ा-कचरा आदि) को किसी खूबसूरत चीज में बदलने के अपने जुनून को बनाए रखा। और लॉकडाउन ने उन्हें दस साल बाद फिर से ऐसा करने का मौका दिया। उन्होंने लॉकडाउन के दौरान अपनी बैठक में ही पूरा एयरपोर्ट बना दिया, वह भी कंट्रोल टॉवर सहित।
उन्होंने घर सजाने के लिए वॉरशिप, क्रूज शिप और आर्मीकॉप्टर, यह सब वेस्ट मटेरियल से बनाया। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी के पूर्व छात्र अजेश ने एयरबस ए300, एयरबस ए320, बोइंग 787 और बोइंग 767 में अंतर का बारीकी से अध्ययन किया और लगभग 20-21 दिन इस प्रोजेक्ट की योजना बनाने में खर्च किए। फिर अगला हफ्ता बेस मॉडल बनाने में लगाया। उनकी पत्नी और दो बेटों को शुरुआत में अंदाजा भी नहीं था कि अजेश क्या करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन फिर उन्हें समझ आया कि यह डिजाइनर क्या कर रहा है और वे इसका नतीजा देखने के लिए उत्साहित थे। उनके काम में सबसे खास क्रूज शिप है, जिसमें छोटा स्विमिंग पूल है और हैंडरेल बनाने के लिए हेयरपिन इस्तेमाल किया गया है। जो लॉकडाउन के दौरान समय काटने के लिए शुरू किया गया था, वह अब बड़ा रीसायकल आर्ट बन चुका है।
फंडा यह है कि लॉकडाउन के बाद ऑफिस के पहले दिन सहकर्मियों को सुनाने के लिए आकाश और अजेश की तरह आप भी लॉकडाउन की उपलब्धि की उत्साहजनक कहानी तैयार रखिए।
मैनेजमेंट फंडा एन. रघुरामन की आवाज में मोबाइल पर सुनने के लिए 9190000071 पर मिस्ड कॉल करें।
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