जब कोरोना वायरस के लिए लड़ाई में जीत हो जाएगी तो इसकी विरासत क्या होगी? क्या कॉर्पोरेट का एक दुखद शोकलेख? अथवा क्या हम इस मौके का इस्तेमाल नावाचार और विजयी रणनीति बनाने के लिए कर सकते हैं? आज सबसे बुरी तरह प्रभावित उद्याेगों में पर्यटन उद्योग है। लेकिन, डिजिटल तकनीक के इस्तेमाल से और वर्चुलाइजेशन (वीआर) द्वारा इसे और अधिक रोचक बनाने के साथ पर्यटकों का आधार बढ़ाने से इसका बचाव हो सकता है। संवर्धित वास्तविकता यानी ऑगमेंटेट रियलिटी (एआर) जैसे टूल, जो कम्प्यूटर के माध्यम से बनाए गए वीडियो, ग्राफिक व जीपीएस जैसे डेटा को सुपरइंपोज्ड करके पर्यटन के वास्तविक अनुभव को एक नई ऊंचाई पर ले जा सकते हैं। इससे देखने वाले को आसपास के वातावरण के साथ ही वास्तविकता से आगे का अनुभव कराया जा सकता है। एक एआर-परिष्कृत संदर्भ के भीतर सूचना संवादमूलक हो जाती है और आसानी से डिजिटल तरीके में इस्तेमाल की जा सकती है। इसे प्रयोग के तौर पर यूरोप के कुछ शहरों ने शुरू करने की कोशिश की है, इनमें इटली का फ्लोरेंस शामिल है।
भारत के संदर्भ में उदाहरण के लिए सांची आने वाला कोई भी पर्यटक अपने स्मार्ट फोन पर एआर एप्लीकेशन का इस्तेमाल करके मौजूदा स्तूप को तो देख ही सकता है, साथ ही वह एक समानांतर दृश्य भी देख सकता है कि अशोक के समय के बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पूजा-प्रार्थना व ध्यान करते हुए कैसा लगता रहा होगा। जब वह परिसर में घूमता है तो वह यहां पर ब्राह्मी लिपि में लिखी बातों के अनुवाद को पहले से सेट की गई भाषा (उदाहरण के लिए जापानी या सिंहली) में भी देख सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के इस्तेमाल से इन अनुभवांे को किसी के लिए उसकी रुचि के मुताबिक और भी व्यक्तिगत बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए अगर कोई यहां पर चित्रित जातक कथाओं के बारे में विस्तृत तौर पर जाना चाहता है तो उसे उस बारे में जानकारी मिल सके। एआर के साथ वर्चुलाइजेशन के लिए बहुत ही रचनात्मकता की जरूरत होगी और यह महंगा भी होगा। सरकार विभिन्न निजी कंपनियों को वर्चुअल टूरिज्म एप डिजायन करने की अनुमति दे सकती है। इसके अलावा सरकार उन्हें पर्यटन स्थलों की शूटिंग की अनुमति, उपलब्ध ऐतिहासिक साहित्य, कलात्मक वस्तुओं और मल्टीमीडिया इंफ्रास्ट्रक्चर तक पहुंच दे सकती है। निजी कंपनियां एआर/वीआर सामग्री बनाकर उसे पब्लिक प्राइवेट साझेदारी के तहत राजस्व बंटवारा करते हुए उपलब्ध करा सकती हैं। इससे कुल राजस्व में वृद्धि होगी, पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और अंतत: पर्यटन स्थल के विकास और संरक्षण में सुधार होगा।
होटल भी इसका इस्तेमाल पर्यटकों को अपने मैप पर अतिरिक्त जानकारी देने के लिए कर सकते हैं। जैसे, अगर मध्य प्रदेश के नक्शे पर स्मार्ट फोन को चंदेरी के ऊपर ले जाते हैं तो इसमें वहां का इतिहास और अन्य रोचक बातें दिख सकती हैं। एक रेस्टोरेंट में मेन्यू के किसी आयटम को ऐसे दिखाया जा सकता है, जैसा वह असल में दिखता है, इसके साथ इसे मिले रिव्यू और जैसा वह पूर्व में ग्राहकों को परोसा गया। ट्रैकर किसी चोटी की ओर अपना स्मार्ट फोन करते हैं तो वह आने वाली पहाड़ियों और चाेटियों के नाम और उपयुक्त कैम्पिंग स्थलों के बारे में जान सकते हैं। इस तरह से पर्यटन स्थलों के आकर्षण को न केवल बढ़ाया जा सकता है, बल्कि अगर उनके प्रति रुचि में कोई कमी भी हुई है तो उसकी भरपाई की जा सकती है।
इसके अलावा बुरी तरह प्रभावित एक अन्य सेक्टर है- नॉन-फूड रिटेल और उपभोक्ता सामान का। इस बात का डर है कि अब मॉल पसंदीदा नहीं रहेंगे। यहां पर फिर से वर्चुलाइजेशन मदद कर सकता है, अगर मॉल अपने यहां स्थित रिटेल आउटलेट के लिए समूहक बन जाते हैं। इसलिए हर मॉल अपना वर्चुअल पोर्टल बना सकता है, जो किसी भी विजिटर को कॉम्प्लेक्स में स्थित हर दुकान की खासियतों का अवलोकन करने की अनुमति दे सकता है। एप को ऐसे बनाया जा सकता है जो सामान का थ्र्रीडी विजुलाइजेशन दे सके। कार निर्माता ऑडी ग्राहकों को बिना शोरूम आए ही कार व रंग का अनुभव कराता है। आईकिया फर्नीचर निर्माता अपने आईकिया प्लेस के माधम से ग्राहकों को उसके उत्पादों का वास्तविक थ्रीडी अनुभव कराते हैं। इसके तहत जिस कमरे में किसी उत्पाद को रखा जाना है, उसकी लंबाई-चौड़ाई आदि को डालकर विजुलाइज कराया जाता है कि वह उत्पाद कहां रखने पर असल में कैसा लगेगा। इस सूचना से ग्राहक में खरीदारी के फैसले लेने को बढ़ावा मिलता है और उसका यह ऐसा फैसला हाेता है, जिससे वह अधिक समय तक खुश रहता है।
भारत जैसे देशों को बिना इस डर के कि इससे टूरिस्ट गाइड या सेल्स पर्सन जैसे सेवा क्षेत्र के अवसर छिन जाएंगे, अपने ग्राहक आधार व उनके उत्साह को बढ़ाने के लिए तेजी से नई तकनीक अपनाना चाहिए। सरकार को खुद को होटलों और रेस्टोरेंटों के प्रबंधन जैसे साधारण कामों से मुक्त करके उचित टेक्नोलॉजी प्लेटफार्म स्थापित करने और व्यापार के लिए वातावरण बनाने पर ध्यान देना चाहिए।
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)
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