मुझे वे सारे वीडियो याद हैं जो मुझे लॉकडाउन के 41 दिनों के दौरान मिले। पहला वीडियो लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में मिला था, जिसे गोवा में मांडोवी रिवरफ्रंट पर बनाया गया था, जहां किनारे से कुछ दूर नदी में कैसिनो और क्रूज बोट्स बहुत सलीके से खड़ी की गई थीं और लॉकडाउन की वजह से पूरी तरह खाली थीं। शांत रिवरफ्रंट पर नदी खुशी-खुशी लहरें भर रही थी मानो पक्षियों और मछलियों से अटखेली कर रही हो। नदी, किनारे से यूं टकरा रही थी, जैसे पत्थरों ने उससे कहा हो, ‘दे ताली’। पंछी चहचहा रहे थे, कुछ जोर-जोर से चीख भी रहे थे। मुझे ऐसा लगा जैसे पक्षियों के कुछ समूह दूसरों से कह रहे हों, ‘सुनो, यहां आ जाओ। यहां भी कोई इंसान नहीं है।’ मछलियां पानी पर थिरक रही थीं, जैसे ऊंची कूद लगा रही हों। इस यादगार वीडियो के लिए वे होठों को सिकोड़कर ऐसे मुंह बना रही थीं जैसे कई लोग सेल्फी लेते हुए बनाते हैं।
अब सीधे इस सोमवार पर आते हैं। सोमवार को आए वीडियोज ने पुराने वीडियोज की खुशी पर पानी फेर दिया। इन वीडियोज ने दिखाया कि कैसे कई शहरों में कुछ दुकानें खुलीं, जिनमें शराब की दुकानें भी शामिल हैं और कैसे क्वारेंटाइन से बाहर आए लोग न केवल एक शहर में, बल्कि देशभर में लंबी कतारें लगाते नजर आए। बेतरतीब पार्किंग, गलियों में अनुशासनहीनता और रास्ता पार करने में लापरवाही इस अराजकता का हिस्सा थी। आबकारी अधिकारियों के मुताबिक केवल बेंगलुरु शहर में ही करीब 4500 दुकानों पर 8.5 लाख लीटर भारत में बनी शराब और 3.9 लाख लीटर बीयर दिनभर में बिकी, जिसकी कीमत 45 करोड़ रुपए है। कई जगहों पर दोपहर तक ही दुकानें खाली हो गईं। सोमवार रात को कई टीवी चैनल्स पर कुछ लोगों ने अपील की कि ये दुकानें रोज खुलेंगी, फिर इतनी जल्दबाजी क्यों? शराब दुकानों के बाहर इस पागलपन को, जिसे ‘रिवेंज शॉपिंग’ कहते हैं, देखकर कई दुकान मालिक खुश थे और उन्होंने इस उम्मीद में तैयारी शुरू कर दी कि जब दुकानें पूरी तरह खुलेंगी तो ऐसी ही भीड़ होगी। लेकिन यह आकलन पूरी तरह से गलत साबित हो सकता है।
तो ‘रिवेंज शॉपिंग’ क्या है? इसका मतलब है ऐसे ग्राहकों द्वारा जरूरत से ज्यादा शॉपिंग करना, जिन्हें लॉकडाउन की वजह से लंबे समय से खरीदारी का मौका नहीं मिल रहा था। ऐसे में ग्राहक अपनी पसंदीदा दुकानों से जरूरत से ज्यादा चाही-अनचाही चीजें खरीदने लगते हैं। ऐसा कई अन्य देशों के लिए तो पूरी तरह सही साबित हुआ है। जैसे चीन में गुआंगझो में हर्मिस का फ्लैगशिप स्टोर खुला तो वहां करीब 20 करोड़ रुपए की बिक्री हुई, जो एक दिन में सबसे ज्यादा बिक्री थी। लेकिन इस वैश्विक अनुभव और शराब विक्रेताओं के अनुभव के आधार पर अपने लिए यह आकलन मत कीजिए कि बाकी दुकानों में भी लोग ‘रिवेंज शॉपिंग’ के खुमार में आ जाएंगे।
एक समाज के रूप में भारतीय हमेशा सावधानी के साथ खरीदारी करते हैं और हम मोलभाव या छूट वाली खरीद में विश्वास रखते हैं। भारतीय सहज रूप, समझदार खरीदार होते हैं और कभी भी शॉपिंग के वैश्विक तरीकों से प्रभावित नहीं होते। इसलिए खरीदारी आवश्यकता आधारित ही होगी और लोग बिना सोचे-समझे सामान इकट्ठा नहीं करेंगे। चूंकि हमने फॉर्मल कपड़े लॉकडाउन के दौरान इस्तेमाल नहीं किए हैं, इसलिए अलमारियों में कपड़े-जूते उपयोग के आधार पर व्यवस्थित ढंग से जमा लिए होंगे। इसके अलावा कम से कम 35 फीसदी लोगों के लिए वर्क फ्रॉम होम जारी रह सकता है, इसलिए त्योहारों का मौसम शुरू होने से पहले तक तो बड़े पैमाने पर शॉपिंग शुरू नहीं होगी।
फंडा यह है कि ‘रिवेंज शॉपिंग’ हमारे वैश्विक समाज में अभी नया बुखार है, लेकिन इसके आधार पर अपने बिजनेस की योजना न बनाएं, क्योंकि भारतीय उपभोक्ता अभी भी मूल्य आधारित पुरानी विचारधारा को मानते हैं।
मैनेजमेंट फंडा एन. रघुरामन की आवाज में मोबाइल पर सुनने के लिए 9190000071 पर मिस्ड कॉल करें
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