ऑस्ट्रेलिया में क्रिसमस के अगले दिन ‘बॉक्स-डे’ मनाया जाता है। सभी लोग अपने पोस्टमैन को नमन करते हैं और उसे भेंट देेते हैं। यह डाकिये की वर्षभर की सेवा के लिए उसे धन्यवाद ज्ञापन करना होता है। इसी तरह कोरोना कालखंड में हमें अपने घर अखबार पहुंचाने वाले हॉकर को धन्यवाद देते हुुए उसे कुछ भेंट देना चाहिए। समाज की मशीन को चलायमान बनाए रखने के लिए धन्यवाद ज्ञापन तेल का काम करता है। हर रिश्ते के निर्वाह के लिए किसी न किसी तेल की आवश्यकता पड़ती है। राजकुमार हिरानी की मुुन्नाभाई में जादू की झप्पी इसी तेल की तरह थी।
भारत का डाक विभाग सक्षम और सक्रिया रहा है, परंतुु बाजार की ताकत ने महंगी कूरियर सेवा द्वारा उसमें सुुरंग लगा दी। पहले जो काम सस्ते में होता था, उसे महंगा बना दिया गया है। राज कपूर की राजा नवाथे द्वारा निर्देशित फिल्म ‘आह’ में पोस्ट मास्टर के मार्फत भेजे गए प्रेम पत्रों के आदान-प्रदान से जन्मी प्रेम कथा प्रस्तुत की गई थी। आह असफल रही, परंतु उसके गीत आज भी लोकप्रिय हैं। इसे यशराज चोपड़ा द्वारा निर्मित एक फिल्म में दोहराया गया था। खाकसार ने भी प्रेम पत्र की घोस्ट राइटिंग की है। छात्रावास में रहते हुए दूसरों के लिए प्रेम पत्र लिखकर पैसे कमाए थे। टेक्नोलॉजी के कारण प्रेम पत्र लिखने की कला लुप्त हो गई। आज एसएमएस द्वारा प्रेम अभिव्यक्त किया जाता है। हुड़दंगियों द्वारा डर्टी एसएमएस द्वारा इस क्षेत्र में भी प्रदूूषण फैला दिया गया है।
फ्रेंच भाषा में लिखी एक प्रेम कथा में साहित्य अनुरागी व्यक्ति अपने मित्र के लिए प्रेम पत्र लिखता है। इन पत्रों से प्रभावित महिला विवाह के बाद जान लेती है कि उसके पति का साहित्य से कोई रिश्ता नहीं है। कथा के अंत में वह असली खत लेखक को चीन्ह लेती है, परंतुु युद्ध में उसका पति और पत्र लेखक दोनों मर जाते हैैं। वह महिला कहती है कि उसने एक बार प्रेम किया और दो बार खोया। हसरत जयपुरी ने अपनी प्रेमिका को प्रेम पत्र लिखा था, जिससे प्रेरित गीत ‘संगम’ में प्रयुक्त किया गया- ‘ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर के तुम नाराज न होना, तुम मेरी जिंदगी हो, तुम्हीं मेरी बंदगी हो…’। फिल्मों में प्रेम पत्र का कालीन के नीचे चले जाना मेलोड्रामा रचने के काम आता रहा है। वर्षों पहले लिखा प्रेम पत्र पति के हाथ लग जाता है तो विवाह टूटने की कगार पर जा पहुंचता है। किशोर वय में पड़ोसन से किए गए एकतरफा अनअभिव्यक्त प्रेम की कसक जीवनभर सालती है। किशोर, बारातियों की जूठन उठाते हुए सोचता है कि वह प्रेम पर्वत पर चढ़ रहा है और चिर विरह की पताका चोटी पर फहराएगा। फिल्मकार टे. गारनेट की फिल्म ‘पोस्टमैन आलवेज रिंग्स टुवाइस’ में एक कस्बाई रेस्त्रां के उम्रदराज मालिक की युवा पत्नी को अपने कर्मचारी से प्रेम हो जाता है। उन्हें एक ही रास्ता दिखाई देता है कि मालिक की हत्या कर दुर्घटना का रूप दे दें। दो बार ‘दुर्घटना’ रची जाती है जिसमें उम्रदराज पति और पत्नी की मृत्यु हो जाती है। रेस्त्रां के मालिकाना हक लेने के लिए नकली दस्तावेज रचे जाते हैं, अंत में कातिल को सजा मिल जाती है।
राजेश खन्ना ने एक फिल्म में डाकिये की भूमिका अभिनीत करते हुए गीत गाया- ‘डाकिया डाक लाया…’। गुजश्ता दौर में मृत्यु का समाचार देने के लिए लिखे गए पोस्टकार्ड का एक कोना काट दिया जाता था। कोना कटा पोस्टकार्ड कांपते हाथों में रखकर पढ़ा जाता था। कूरियर सेवा ने सब मिटा दिया।
बिमल रॉय की ‘बंदगी’ में राखी के समय महिला कैदी की वेदना शैलेंद्र ने यूं बयां की हैै- ‘अब के बरस भेज भैया को बाबुल, सावन में लीजो बुलाय, लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियां, दीजौ संदेसो पठाय..’। ज्ञातव्य है कि साहिर लुधियानवी और अम्रता प्रीतम के प्रेम पत्र प्रकाशित हुए हैं। इसी तरह कैफी आजमी और शौकत आजमी का पत्र व्यवहार भी यादगार है। हसरत जयपुरी का गीत है- ‘लिखे जो खत तुझे, वे तेरी याद में हजारों रंग के नजारे बन गए...’। मनुष्य का आशावाद देखिए कि बुरी खबर देने वाले पत्र की अंतिम बात शेष शुभ होती है।
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