हर बुराई को एक न एक दिन खत्म होना होता है। समझदार व्यक्ति दूसरी बुराई कब पनपेगी, इस अंतर को बढ़ा देता है। बुराइयां कभी खत्म होंगी भी नहीं। महत्वपूर्ण यह है कि आप उसे किस योग्यता से निपटाते हैं। यदि कोरोना को एक बुराई मान लें तो इस समय समझदारी यह होगी कि इसे किस ताकत के साथ निपटाएं। तुलसीदासजी ने हनुमानजी के लिए एक पंक्ति लिखी है- ‘बिनु प्रयास हनुमान उठायो। लंका द्वार राखि पुनि आयो।।’ मेघनाद के मरने के बाद हनुमानजी उसे आसानी से उठाकर लंका के द्वार पर छोड़ आए। मेघनाद भी एक बुराई था, इसलिए मरना तो था ही।
आज कोरोनारूपी बुराई या बीमारी हमारे जीवन में किन कारणों से आई, यह इस पर बहस का समय नहीं है। हमें उसके लक्षण पकड़ना हैं। मरते-मरते मेघनाद ने राम कहां है.., लक्ष्मण कहां है.. ऐसा पूछा था। उसे इन दोनों का नाम लेते देख अंगद और हनुमान ने कहा था- तू धन्य है जो लक्ष्मणजी के हाथ मारा गया और अंत समय में श्रीराम को याद किया।
भारत की धरती पर इस महामारी से जो संघर्ष हो रहा है, उसमें हमारा अध्यात्म, आयुर्वेदिक, प्राकृतिक चिकित्सा के साधन और भारतीयों की शाकाहारी जीवनशैली ही इसे पसरने से रोक रहे हैं। ऐसे चिंतन को, ऐसे विचारों को, ऐसी जीवनशैली को जीवन से जोड़ें और ज्ञात-अज्ञात जो भी ताकत आपके पास है, उसे पूरी तरह से झोंकते हुए मेघनाद ही की तरह कोरोना को भी मार दें, समाप्त कर दें, कहीं दूर पटक आएं।
जीने की राह कॉलम पं. विजयशंकर मेहता जी की आवाज में मोबाइल पर सुनने के लिए 9190000072 पर मिस्ड कॉल करें
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