आईटी सिटी बेंगलुरु में लगभग दो हफ्ते पहले तक सब ठीक था। कोविड से निपटने को लेकर यहां की मिसालें दी जा रही थीं, लेकिन अचानक से एक दिन में हजार से ज्यादा कोविड के केस आने लगे, एंबुलेंस, बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर यहां तक कि कब्रिस्तानों-श्मशानों में जमीन कम पड़ने लगी। डर ऐसा कि पंचायतों ने बेंगलुरु से गांव-देहात से आने वालों पर जुर्माने का ऐलान कर दिया।
अस्पताल में बेेड न मिलने से मौतों का सिलसिला जारी है। स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर अचानक से तमाम सरकारी व्यवस्थाएं धड़ाम से गिर गई हैं। हालांकि, सरकारी वेबसाइट और बयानों में अस्पतालों में बेड भी हैं और स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन ग्राउंड पर, पर्दे के पीछे, कारपेट के नीचे सब अस्त-व्यस्त फैला पड़ा है।
बुधवार को आए कर्नाटक के कुल 28 हजार 877 कोविड केस में से 60 फीसदी केवल बेंगलुरु के हैं। हेल्थ एंड फूडकमिश्नर पंकज पांडे बताते हैं, बेंगलुरु में 300 सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में कोविड मरीजों के इलाज की व्यवस्था है और 5 हजार से ज्यादा डॉक्टर हैं और इतने ही बेड हैं। 10 हजार टेस्ट रोज हो रहे हैं।
27 जून से पहले के आंकड़ें देखें तो सब ठीक था। स्थिति नियंत्रण में थी। लेकिन, इसके बाद हर दिन बेंगलुरु में जहां पहले 100 से 140 केस आ रहे थे, उनका आंकड़ा अचानक से 1000 से 1300 के बीच पहुंच गया। कर्नाटक ने राज्य के साथ लगती अपनी सीमाएं सील कर दी हैं।
कुछ दिन पहले यहां के एक प्राइवेट अस्पताल एचबीएस के 44 में से 39 डॉक्टर ड्यूटी पर नहीं आए। अस्पताल के एमडी डॉ. ताहा मजीद को वीडियो के जरिए बेंगलुरु के दूसरे डॉक्टरों और नर्सों से अपील करनी पड़ी कि कम से कम ऐसे वक्त में डॉक्टर अस्पताल आएं। मरीज मर रहे हैं, डॉक्टर अपना फर्ज निभाएं। सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और डॉ. मतीन को इंटरव्यू करने के लिए देश-विदेश के मीडिया की लंबी कतार लग गई।
डॉ.सेलविया कारपागम बताती हैं ‘कोविड को लेकर सरकार की पॉलिसी ही गलत है। सरकार ने नियम बना दिया है कि कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट के बिना न तो एंबुलेंस आएगी, न अस्पताल में बेड मिलेगा। तबीयत बिगड़ने के तीन दिन बाद जब तक रिपोर्ट आती है तब तक देर हो चुकी होती है।’
डॉ. सेलविया पब्लिक हेल्थ डॉक्टर हैं जो शहर के बहुत सारे डॉक्टरों के साथ काम कर रही हैं। उनका कहना है सरकार ने लॉकडाउन में नियम तोड़ने वालों से केवल कान पकड़वाए हैं और उठक बैठक करवाई है। लॉकडाउन का वक्त सरकार को तैयारी के लिए मिला था। हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अपार्टमेंट्स के क्लब हाउस में हाउसिंग सोसाइटीज ऑक्सीजन सिलेंडर रख बेड लगवाने पर विचार कर रही हैं।
डॉ. सेलविया के अनुसार सरकार ने कोविड को लेकर एक टास्क फोर्स बनाई है लेकिन उसमें जो लोग हैं उन्हें पब्लिक हेल्थ और महामारी से निपटने का कोई अनुभव नहीं है। वे फाइव स्टार अस्पतालों के नुमाइंदे हैं। एक बड़ा नुकसान यह है कि बेंगलुरु में इलाज करवाने के लिए बड़ी संख्या में लोग बाहर से आते हैं। वे सब इलाज बंद कर दिए गए हैं। यहां के कैंसर अस्पताल में कीमोथैरेपी बंद कर दी गई।
निजी अस्पताल के जनरल वॉर्ड में वेंटिलेटर के साथ बेड का एक दिन का खर्च 25 हजार से 35 हजार रुपए है। डॉ. सेलविया का कहना है कि यह रेट पहले तो बहुत ज्यादा था, लेकिन इतने पैसे देना भी हर किसी के बूते की बात नहीं है।
बेंगलुरु के जयनगर में मर्सी मिशन की ओर से मरीजों को ऑक्सीजन सिलेंडर मुहैया करवाने वाले तौसीफ खान बताते हैं कि एक बड़ी समस्या ये है कि निजी अस्पताल केवल एसिम्टम्स वालों को ले रहे हैं। गंभीर हालत वालों को एडमिट ही नहीं कर रहे ताकि उनके अस्पताल का रिकॉर्ड खराब न हो।
तौसीफ बताते हैं आबिद नाम का लड़का इस वक्त अपने पिता का अंतिम संस्कार कर रहा है। कल वे लोग बेड के लिए बेंगलुरु के 28 अस्पताल घूमे हैं, हमने भी मदद करने की कोशिश की लेकिन हम नाकाम रहे। उनके पिता ने एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया।
सरकार की ओर से कोविड के लिए बनाई गई टास्क फोर्स को लीड कर रहे डॉ. सीएन मंजूनाथ स्वीकार करते हैं कि बेंगलुरु में कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू हो चुका है। मंजूनाथ का दावा है कि दो-तीन सप्ताह तक स्थिति पर काबू पा लिया जाएगा।
वह यह भी स्वीकार करते हैं कि यहां सब ठीक नहीं चल रहा है, बेड और एंबुलेंस मिलने में सरकार को दिक्कत आ रही है लेकिन सरकार जल्द ही 700 नई एंबुलेंस खरीदने जा रही है। फिलहाल बेंगलुरु की 1.3 करोड़ आबादी के लिए सिर्फ 300 एंबुलेंस हैं। मेडिकल स्टाफ की कमी के चलते सरकार ने डॉक्टरों और नर्सों को ऑनलाइन ट्रेनिंग देने की बात भी कही है।
अस्पतालों में बेड की कमी की वजह ये भी है कि जिन लोगों को आईसीयू या बेड नहीं चाहिए वे लोग भी अस्पतालों में एडमिट हैं। ये लोग घर पर भी इलाज करवा सकते हैं लेकिन जान गंवाने के डर से वे एडमिट हो रहे हैं। अस्पताल भी अपनी रिपोर्ट अच्छी दिखाने के लिए उन्हें एडमिट कर रहे हैं।
शहर के कई नामी निजी अस्पतालों के डॉ. बेलगामी मोहम्मद साद कहते हैं, जितना बताया जा रहा है कोविड के मामले उससे 200 फीसदी ज्यादा हैं। वह कहते हैं उनके पास बीते पांच दिन में 5 हजार 300 ऐसे फोन आए जिसमें लोग यह पूछ रहे हैं कि उन्हें कोविड के लक्षण हैं, उन्हें करना क्या है।
अंतिम संस्कार करने वाले एक व्यक्ति के मुताबिक, दो सप्ताह पहले एक दिन में 2 से 3 मौतें हो रही थीं लेकिन अब एक दिन में 20 से 25 मौतें हो रही हैं। वह बताते हैं ‘मेरा फोन सुबह 6.30 बजे बजना शुरू हो जाता है और रात के 12 बजे तक एक मिनट के लिए फोन फ्री नहीं होता है। अस्पताल, रिश्तेदार, डॉक्टर, एंबुलेंस के बीच कोऑर्डिनेशन करते ही वक्त बीत जाता है।’
कुछ दिन पहले कर्नाटक का एक वीडियो आया था जिसमें बेंगलुरु से बाहर एक जगह पर कोविड मरीजों की बॉडीज को एक गड्ढे में फेंका जा रहा था। वीडियो वायरल होने के बाद सरकार ने कोविड मरीजों के शव के अंतिम संस्कार के लिए दो-दो एकड़ के तीन प्लॉट देने का ऐलान किया है। डॉ. मंजूनाथ बताते हैं ऐसा इसलिए भी किया गया क्योंकि लोग अपनी कॉलोनी के पास वाले कब्रिस्तान या शमशान में अंतिम क्रिया करने पर ऐतराज कर रहे थे।
कांग्रेस प्रवक्ता सत्या प्रकाश ई कहते हैं बेंगलुरु से आसपास के गांव-देहात ने ऐलान कर दिया है कि कोई भी अगर बेंगलुरु से गांव-देहात आएगा तो उसे भारी जुर्माना लगाया जाएगा। बेंगलुरु के अलावा वेल्लारी का भी यही हाल है। लॉकडाउन में भी यहां चल रही जिंदल की फैक्ट्री बंद नहीं की गई। यहां रोजाना लगभग 4 हजार लोगों का आना-जाना रहा, जिस वजह से वेल्लारी भी कोरोना का हॉट स्पॉट बन गया। उनका आरोप है कि सरकार ने वेंटिलेटर, पीपीई किट, फेस मास्क, दस्ताने, ऑक्सीजन सिलेंडर जैसा सामान 3 हजार 392 करोड़ रुपए में खरीदा जबकि इसकी मार्केट कीमत 1,163.65 करोड़ रुपए है।
अब भी जारी है पलायन...
राज्य के लेबर कमिश्नर ऑफिस के अधिकारियों के अनुसार वे लोग अभी तक साढे तीन लाख लोगों को उनके घर पहुंचा चुके हैं। लेकिन अभी भी दो या तीन दिन में एक श्रमिक ट्रेन जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि इन लोगों के पास जनरल ट्रेन में जाने के लिए पैसे नहीं हैं।
समस्तीपुर के जावेद बेंगलुरु में गुब्बारे बेचते थे। भूखे प्यासे अपने परिवार के साथ स्टेशन पर बैठे हैं। पूरे परिवार को खाने के नाम पर हल्की सर्द रात में किसी ने एक-एक मौसंबी थमाई है। वह बताते हैं ‘मैं पूरे परिवार के साथ वापस जा रहा हूं। चार महीने से घर पर बैठकर खा रहा था। अब नहीं हो पा रहा है।’ यहां क्रान्तिवीर सुगौली रेलवे स्टेशन पर 2 हजार लोग हैं, जिन्हें पटना के दानापुर स्टेशन जाना है और वहां से सभी अपने अपने जिलों में जाएंगे। मध्य प्रदेश के सतना के 16 लोग घर जाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। ये लोग बताते हैं कि अधिकारी बोल रहे हैं कि जब तक 1,000 लोग नहीं हो जाते हैं तब तक ट्रेन से नहीं भेजेंगे। यह लोग मकान बनाने का काम करते थे। त्रिपुरावासी पैलेस ग्राउंड में बने शैल्टर में रह रहे हैं। इसी शेल्टर से स्टेशन के लिए बसें चलाई जाती हैं।
पूरे परिवार के साथ गृहस्थी सिर पर उठाए मजदूर इस स्टेशन से घर जा रहे हैं। खाने के नाम पर एक वक्त का खाना, एक पानी की बोतल और कुछ फल दिए जा रहे हैं। टेस्ट के नाम पर स्टेशन पर सिर्फ इनका टेंप्रेचर चैक हो रहा है। उसके बाद एनजीओ, लेबर और पुलिस विभाग की मौजूदगी में इन्हें ट्रेन में बिठाया जा रहा है। यह बेंगलुरु से जाने वाली 238वीं ट्रेन है। जाने वालों की तादाद यूपी, बिहार और नॉर्थ ईस्ट की है। यहां बड़ी तादाद में ओडिशा के लोग भी काम करते हैं। जिस ट्रेन में जहां के लोगों की संख्या ज्यादा होती है उसका रूट बदल दिया जाता है। जैसे इस ट्रेन को यूपी-बिहार नहीं जाना था लेकिन देखते ही देखते यूपी बिहार के लोगों का तादाद इतनी हो गई कि इसका रूट यूपी बिहार होते हुए असम का बनाना पड़ा।
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