क म से कम पिछले 20 सालों में विकास की बहुत ज्यादा बात हुई है, इसका मतलब है कि हमारी खुशहाली के पीछे आर्थिक विकास ही रहा है। अब आपको ये अच्छा लगे या न लगे लेकिन इस संकीर्ण सोच ने हमें स्वार्थी बना दिया है। और अचानक कहीं से इस वायरस ने हमला कर दिया।
इस वायरस से जुड़ी तमाम नकारात्मकताओं के बीच एक सकारात्मक पहलू, आपसी मदद ने हमारी जिंदगी को गुलज़ार करना शुरू कर दिया है। जब लोग अपनी सीमाओं के परे जाकर एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं, तब वे मानव अस्तित्व के उद्देश्य को भी अलग स्तर पर ले जा रहे हैं। यहां कुछ उदाहरण हैं।
पहली कहानी: 2017 में एक छात्र के माता-पिता नवी मुंबई से कर्नाटक बसने जा रहे थे, इसलिए उसने टीसी के लिए आवेदन किया, जो सामान्य है। पर नवी मुंबई सरकारी स्कूल के टीचर को इसलिए आश्चर्य हुआ क्योंकि उस छात्र के माता-पिता डेली वेजर्स थे और इससे पहले कभी भी किसी डेली वेजर्स के बच्चे ने टीसी नहीं मांगी थी। छात्र सोनू चंदू चव्हाण की अपने दस्तावेजों के साथ अगली कक्षा में प्रवेश पाने की मैच्योरिटी ने टीचर को उसे दोबारा देखने पर मजबूर कर दिया। शिक्षक शुभांगी संसारे पढ़ने की उसकी ललक सेे बहुत प्रभावित हुईं और सतारा(महाराष्ट्र) के एक बोर्डिंग स्कूल में उसका दाखिला करा दिया।
वह तीन साल से दूर से ही उसकी पढ़ाई पर नजर रख रहीं थीं, पर वायरस ने सबकुछ बदलकर रख दिया। छात्रों को स्कूल छोड़ने के लिए कह दिया गया, लेकिन सोनू के डेली वेजर्स माता-पिता हैदराबाद में फंसे होने के कारण(ठेकेदार के साथ काम के सिलसिले में कर्नाटक से आए थे) उस तक नहीं पहुंच सकते थे, ऐसे में उसके लिए कहीं जाने की जगह नहीं बची थी।
जब शुभांगी को सोनू की परिस्थिति का पता चला तो वह और उसके पति रमन ड्राइव करके सतारा गए और उसे दादर स्थित अपने घर ले आए। लॉकडाउन में सोनू को ना सिर्फ अंग्रेजी जैसे उसके कमजोर विषय में मदद मिल रही है, बल्कि रमन उसे लाइफ स्किल्स भी सिखा रहे हैं। कसरत से लेकर अनुशासित दिनचर्या का पालन करके वह अपनी जिंदगी पर ध्यान दे रहा है। शुभांगी ने तय किया है कि जब तक उसका स्कूल नहीं खुलता, वह उसकी देखभाल करेगी।
दूसरी कहानी: मुंबई में 5 जुलाई को भारी बारिश के बीच नाकाबंदी की ड्यूटी खत्म कर आराम करने जा रहीं पीएसआई प्रिया गरूड़ को रात के 3 बजे फोन आया। फोन करने वाले ने बताया कि मानसिक रूप से बीमार एक महिला लेबर पैन से कराह रही है। प्रिया और उसका स्टाफ तुरंत वहां पहुंचा, एंबुलेंस को फोन किया, लेकिन वह नहीं आई। पुलिस मदद के लिए हॉस्पिटल गई लेकिन तड़के किसी ने भी आने से मना कर दिया। पुलिस वापस उसी जगह पहुंची और देखा कि उसकी डिलीवरी हो चुकी है और आसपास चूहे घूम रहे थे।
गर्भनाल काटने के लिए वेे किसी मेडिकल प्रोफेशनल की मदद चाह रहे थे। इस बीच सूर्योदय हो गया और ताज़े मांस की गंध से कौए भी आसपास मंडराने लगे थे। भगवान का शुक्र था कि एंबुलेंस आ गई थी, लेकिन कोई डॉक्टर नहीं था। पुलिस ने उस जगह से जाए बिना तुरंत डॉक्टर को बुलाया। उसकी पीपीई किट की मांग पर उसे किट उपलब्ध कराई और उसके बाद मां और बच्चे दोनों को एंबुलेंस हॉस्पिटल ले गई। तीन घंटे के इस कठिन समय के बाद आखिरकार उन पुलिस वालों के चेहरे पर मुस्कान आई क्योंकि उन्होंने एक मासूम की जिंदगी बचा ली थी।
फंडा यह है कि निराशाओं के बीच कोविड का एक सकारात्मक पक्ष भी है कि पूरी मानवजाति को अब समझ आ गया है कि हम सब आपस में मिलकर मदद के भाव को दूसरे स्तर पर ले जाएं।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2DzDo71
No comments:
Post a Comment