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Sunday, May 3, 2020

2020 आपके लिए ‘गैप ईयर’ हो सकता है!

‘अरे वाह, तू तो बड़ा हो गया, अभी तो तेरे लिए नया घर ढूंढना पड़ेगा।’ मुझे याद है कि मां ये शब्द एक छोटे पौधे से कह रही थीं, जो दूसरे पौधे की छांव में थोड़ा बड़ा हो गया था। यही कारण था कि वह उस छोटे पौधे से वादा कर रही थीं कि वे उसे अलग घर (यानी गमला) देंगी। मैं उनके बगल में खड़ा होकर सोच रहा था कि आखिर यह पौधा जवाब कैसे देगा। मुझे मेरी मां का पौधों से बात करना हमेशा मजेदार लगता था। और नागपुर के घर में पीछे के आंगन में बने छोटे से बगीचे में पिता अचानक घुस आते थे और मां को मजाकिया लहजे में डांटते थे- ‘अगर तुम हमारे बेटे को ये पेड़-पौधों से बात करने का पागलपन सिखाओगी तो वह कभी प्राइमरी स्कूल भी पास नहीं कर पाएगा।’ हालांकि, मैं उनके इन शब्दों से बेकल हो जाता था, लेकिन मेरी मां को कोई फर्क नहीं पड़ता था। वे कहती थीं- ‘अगर हमारा बेटा कुछ देर खड़ा रहेगा और कुछ नहीं करेगा तो धरती फट नहीं जाएगी।’
बचपन का यह अनुभव मुझे तब याद आया जब दिल्ली में रहने वाले मेरे प्रकाशक दोस्त पीयूष कुमार ने मुझे आज सुबह फोन किया और अपनी तीन वर्षीय बेटी पीयू से जुड़ी चिंता साझा की। उनकी बेटी को गैजेट्स की लत हो रही है। जो लॉकडाउन से पहले 30 मिनट गैजेट इस्तेमाल करती थी, अब लॉकडाउन के दौरान तीन घंटे कर रही है।
इस बात के बाद मैंने पुणे के आनंदवन व्यसनमुक्ति केंद्र में कार्यरत मेरे एक परिचित को फोन किया, जिन्होंने मेरे डर की पुष्टि की। स्क्रीन की लत एक बड़ी समस्या बन चुकी है, खासतौर पर बच्चों के लिए। लॉकडाउन में बीते हफ्तों के दौरान यह एक गंभीर सामाजिक बीमारी बनती जा रही है। इसका असर इतना है कि इस केंद्र पर रोजाना ढेरों फोन आ रहे हैं, यहां तक कि कोल्हापुर, बीड, नांदेड़ और औरंगाबाद जैसे छोटे शहरों से भी, जबकि उनके पास बच्चों के साथ वक्त बिताने के कई अन्य तरीके भी हैं।
व्यसनमुक्ति केंद्र द्वारा कराए गए अध्ययन के अनुसार 12 से 14 साल के उम्रवर्ग के बच्चों को गेम्स की लत है, जिनकी उम्र 14 से 24 साल के बीच है वे सोशल मीडिया पर ज्यादा व्यस्त हैं, वहीं 25 से 35 वर्ष की उम्रवर्ग वाले लोग ज्यादातर बिंज-वॉचिंग (लगातार फिल्म-टीवी देखना) के साथ सोशल मीडिया में लगे हुए हैं। वहीं 35 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोग वीडियो, न्यूज और सोशल मीडिया से समय काट रहे हैं।
हिसार के विजडम स्कूल के अधिकारियों और कई माता-पिता भी इस बात पर सहमत हैं कि ‘अगर एक साल थोड़ी औपचारिक पढ़ाई नहीं भी होगी, तो कौन-सा पहाड़ टूट जाएगा।’ वे इस बात पर एकमत हैं कि सामान्य तरीकों से पढ़ाने की बजाय, गैजेट्स से पढ़ाने से कोई ऐसी बीमारी हो जाएगी, जिसे बाद में संभालना मुश्किल होगा। बच्चों को तो ऐसे ही अगली क्लास में प्रमोट किया जा सकता है। लेकिन जो 14 से 24 साल या इससे ज्यादा के उम्र वर्ग के हैं या बाजार की स्थितियों की वजह से जिनकी नौकरियां चली गई हैं, उन्हें मैं सलाह दूंगा कि अगर आर्थिक रूप से संभव हो तो अमेरिकी लाइफस्टाइल अपनाएं, जहां ‘गैप ईयर’ काफी प्रचलित है।
तो ‘गैप ईयर’ है क्या? यह आमतौर पर पढ़ाई या काम से लिया गया 12 महीने का रचनात्मक ब्रेक है, ताकि कोई व्यक्ति अपनी अन्य रुचियों पर ध्यान दे सके, जो आमतौर पर नियमित जीवन से या काम के क्षेत्र से ही जुड़ी हुई हों, लेकिन कुछ अलग हों या उससे पूरी तरह हटकर हों। इससे छात्रों को उनकी रुचि के मुताबिक ग्रेजुएशन के लिए सही कॉलेज चुनने में मदद मिलेगी। वे लोग, जिनकी कंपनियां बंद हो गईं या नौकरी चली गई है, वे इसे ‘सबैटिकल ईयर’ (विश्राम का साल) मान लें और अपनी औपचारिक नौकरी से ब्रेक लेकर अन्य नौकरियां तलाशें या अन्य रुचियां अपनाएं। हो सकता है ये आपको जीवन में किसी नई राह पर ले जाए।
फंडा यह है कि 2020 ‘गैप ईयर’ बन सकता है और अलग-अलग उम्र वर्गों के लिए इसका मतलब अलग हो सकता है। लेकिन कुल मिलाकर यह तनाव न लेकर हमारे अस्तित्व के कारण पर विचार करने का साल है।

मैनेजमेंट फंडा एन. रघुरामन की आवाज में मोबाइल पर सुनने के लिए9190000071 पर मिस्ड कॉल करें



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