फिल्मी गीत प्रस्तुतिकरण में शब्द का ‘बिंब अनुवाद’ प्रस्तुत किया जाता है। राजकुमार हिरानी ने ‘थ्री ईडियट्स’ में इस पर सटीक टिप्पणी की है। गीत है- ‘शाखों पर पत्ते गा रहे हैं, फूलों पर भंवरे मंडरा रहे हैं, दो पंछी गा रहे हैं, बगिया में हो रही है गुफ्तगू, जैसा फिल्मों में होता है, हो रहा है हू-ब-हू’। फिल्मकारों का यह नजरिया सरलीकरण से प्रेरित है। फिल्म ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ में हसरत जयपुरी का गीत है- ‘आसमां से आया फरिश्ता’, शम्मी कपूर को हेलिकॉप्टर से गीत गाता हुआ दिखाया गया है। इसी तरह गीत ‘बहारों फूल बरसाओ मेरा मेहबूब आया है’ में अनगिनत फूल बरसाए गए। गीतों के प्रस्तुतिकरण में शब्द का बिंब अनुवाद प्रस्तुत किया जाता है।
‘प्यासा’ जैसी महान फिल्म के क्लाइमैक्स गीत में शायर की बरसी मनाई जा रही है और वहां शायर सभागृह के द्वार पर क्राइस्ट की मुुद्रा में खड़ा हुआ है- ‘ये दुनिया मेरे काम की नहीं’। बिमल रॉय की फिल्म मधुमति के गीत ‘मैं नदिया, फिर भी मैं प्यासी, भेद यह गहरा बात जरा सी’ में नायिका को सूखी हुई नदी में खड़ा दिखाया गया है। गुरु दत्त और उनके शागिर्द राज खोसला गीतों के प्रस्तुतिकरण से अपनी कथा को आगे बढ़ाते हैं। फिल्म सीआईडी में वहीदा रहमान ‘कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना के द्वारा नायक को बचकर भाग निकलने का संकेत देती है। राज खोसला की फिल्म ‘मेरा गांव मेरा देश’ में गीत के द्वारा नायक को संदेश दिया गया है। पुलिस ने घेरा डाला है। गीत- ‘हाय शरमाऊं, किस-किस को बताऊं, ऐसे कैसे मैं सुनाऊं सबको अपनी प्रेम कहानियां.., आंखों को मीचे, सांसों को खींचे, वहां पीपल के नीचे मेले में सबसे पीछे, खड़ा है...’। फिल्म बॉबी का गीत ‘हम तुम एक कमरे में बंद हों और चाबी खो जाए..’ आजकल इसे कोरोना से बचने की हिदायत की तरह दिया जा रहा है। इसी फिल्म में किशोर नायक को गीत द्वारा खतरे से आगाह किया जाता है- ‘पंछी पिंजरा लेकर उड़ जाए तो शायद जान बच जाए, किसी धोखे से, किसी मौके से बचाकर आंख पंछी उड़ जाए’।
फूलों के बाजार में लाभ, लोभ के कारण अजीबोगरीब काम किए जाते हैं। एम्सटर्डम अपने ट्यूलिप फूलों के लिए विख्यात रहा है। एक वर्ष बहुत अधिक संख्या में फूल खिले तो सरकार ने फूलों को नष्ट कर दिया ताकि उसके भाव गिर न जाएं। एक वर्ष अमेरिका में इतना अधिक अनाज उपजा कि पूरी दुनिया में कोई भूखा न रहे, परंतु अनाज समुद्र में डुबो दिया ताकि मांग बनी रहे और मुनाफा न डूबे। सच तो यह है कि धरती इतना उपजाती है कि कहीं कोई भूखा न रहे, परंतु सरकार और व्यापारी भूख के बाजार बनाए रखते हैं। याद आती है धूमिल की पंक्तियां- ‘एक आदमी रोटी बेलता है, एक आदमी रोटी खाता है, एक तीसरा आदमी भी है जो न रोटी बेलता है न रोटी खाता है, वह सिर्फ रोटी से खेलता है, मैं पूूछता हूं कि यह तीसरा आदमी कौन है, मेरे देश की संसद मौन है’।
माखनलाल चतुर्वेदी की कविता का अंश इस तरह है- ‘चाह नहीं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं, चाह नहीं सम्राटों के शव पर डाला जाऊं, चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ भाग्य पर इठलाऊं, मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक’।
साहिर लुधियानवी ने फिल्म ‘फिर सुबह होगी’ के लिए लिखा- ‘दो बूंदें सावन की हाय दो बूंदे सावन की, एक सागर की सीप में समाए और मोती बन जाए, दूजी गंदे जल में गिरकर अपने आप को गंवाए, किसको मुजरिम समझे कोई, किसको दोष लगाए’। वर्तमान समय में दोष लगाना या प्रश्न पूछना भी एक गुनाह अजीम है। खामोश रहकर मजमा देखिए, धरती से आया फरिश्ता, कश्मीर से कन्याकुमारी तक फूल बरसा रहा है। अब यह फूल की किस्मत है कि वह शव पर गिरे या किसी इबादतगाह पर’। यशराज चोपड़ा की फिल्म ‘चांदनी’ में प्रेमी, प्रेमिका को छत पर जाने का निर्देश देता है और हेलिकॉप्टर पर बैठकर उस पर फूल बरसाते हुए दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है। इस तरह चांदनी मैली हो जाती है। मुहावरा है फूल और कांटे का, परंतु अभावग्रस्त व्यक्ति फूल से भी चोटिल हो जाता है। अब तो कांटों को भी मुरझाने का खौफ सता रहा है।
वैश्विक आर्थिक मंदी द्वार पर दस्तक दे रही है। साधनरहित अवाम के दिल में गूंजने वाले नगमों के लिए व्यवस्थाएं कौन से बिंब रचेंगी? जादूगर मैनड्रैक्स हथेली पर सरसों खिला सकता है, गले में धारण किया सोने का गहना गायब हो जाता है। क्रिस्टोफर मोलन की फिल्म ‘प्रीस्टेज’ में मृत्युदंड पाने वाले व्यक्ति को वह व्यक्ति मिलने आता है, जिसके कत्ल के आरोप में उसे मृत्युदंड दिया गया है। अब सारा खेल हुक्मरान की प्रीस्टेज और अवाम के प्राइड तथा प्रीज्यूडिस का बनकर रह गया है। हम अत्यंत तमाशबीन हैं, हम हमेशा ताली बजाते रहेंगे। हम तृप्त हैं, वह मुग्ध है अग्नि को गर्भ में धारण किए धरती कराह रही है।
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